Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ श्री उदयन मंत्री वि. सं. २०६४, मासो सुE-७, भंगणवार . . ७-१०-२००८ .१०८ धर्म या विशेषis श्री उदयन म एक बार श्री कुमारपाल राजा ने सोरठ देश के राजा की आज्ञाएँ देकर मंत्रीस्वदेशकी ओर लौटे। समरसेन को जीतने के लिये-अपने मंत्री उदयन को भेजा। मार्ग में शत्रु के प्रहार की पीडा से मंत्री की आँखो में पालिताणा पहुंचने पर तलहटी के दर्शन करके श्री ऋषभदेव अंधेरा छा जाने से मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पडे और भगवान की वंदना करने की इच्छा होने से वह अन्य सैनिकों करुण स्वर में रोने लगे। सामंतो ने उन पर जल छिड़का और को आगे बढ़ने का कहकर वह शत्रुजय पर्वत पर चढ़ा । दर्शन अपने वस्त्रों से पवन डालकर, कुछ शुद्धि में लाकर उनको वंदन करके तीसरी - निसीहि कहकर चैत्यवंदन करने वह पूछा, 'आपको कुछ कहना है ?' तब उदयन मंत्री ने करुणता बैठा। से कहा, 'मेरे मन में चार शल्य हैं ।' छोटे पुत्र अंबड को चैत्यवंदन करते हुए उसकी नज़र के समक्ष एक चूहा सेनापति पद दिलाना, शत्रुजय गिरि पर पत्थरमय प्रसाद जलती बत्ती लेकर अपने बील की ओर दौडता देखा । मंदिर के बनाना, गिरनार पर्वत पर चढने के लिए नयी सिढीयाँ बनवानी पूजारीयों ने दौड़कर चुहे से बत्ती छुडवाकर बुझा दी । यह सब और अंत समय पर मुझे कोई मुनि महाराजा पुण्य सुनाकर देखकर मंत्रीने मनसेसोचा-मंदिर तो काष्ठ का है। काष्ठ के समाधिचरण कराये। स्तंभ, छत बगैरह होनेके कारण कोई बार ऐसी घटना से आग ___ मंत्री की ये चार इच्छाएँ सुनकर सामंतो ने कहा लगने का संभव हो सकता है। 'चार में से तीन तो आपका बड़ा पुत्र बाहडदेव जरुर पूर्ण राज्य के राजा तथा समृद्ध व्यापारी काष्ठ मंदिर को करेगा। परंतु यहाँ जंगल में धर्म सुनानेवाले मुनिराज हो तो पत्थर का बनाकर जीर्ण चैत्य को नूतन क्यों न बनाये ? ऐसा वे तलाश करके जल्दी से लाने का प्रबन्ध करते है।' न करें तो मुझे इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराना चाहिये । ऐसी थोडी दूर गाँव में एक भाँड रहेता था जो बहुरूपिये भावना से जहाँ तक जीर्णोद्धार न हो तब तक ब्रह्मचर्य, का पेशा करके धन कमाता था। सैनिको ने वहाँ जाकर बताया एकासना पृथ्वी पर शयन करना । पर्वत से उतरकर प्रयाण कि एक जैन मुनि महाराज की जरुरत है । भाँड बोला, 'मुझे करते हुए अपने सैनिक के साथ हो गये। चौबीस घण्टे का समय दो, मैं जैन मुनि के बारे में सब जानकर, समरसेन राजा के साथ युद्ध होने पर अपना जैन मुनि का वेष जरुर अच्छा निभालूंगा।' सैन्य भागने के कारण उदयन मंत्री संग्राम में . .. जैसे तैसे अतिशय पीडा से पीडित मंत्री ने उतरकर शत्रु सैन्य को घायल करने लगे । खुद अर्धबेहोशी में रात गुजार दी। भाण्ड सुबह में ठीक शत्रुके बाणों से बड़े घायल हुए पर अपने बाण से साधू महाराज जैसा भेष बनाकर आया, मुहपत्ती के समरराजा पर विजय पायी । इस कारण शत्रु सैनिक भाग साथ आ पहुँचा और 'धर्मलाभ' कहकर खडा रहा । कुछ खडे हुए और उस देश में अपने ज्ञजा कुमारपाल की अहिंसा | होश में आते ही मंत्रीश्वर ने बैठकर गौतम स्वामी की तरह

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228