Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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शैलक राजर्षि एव पंथक मनि
वि.सं. २०६४, मासो सुद-७, भंगणवार .
७-१०-२००८.१०८ धर्म था विशेषis
शैलकाचार्य चीडा उठे : 'क्यों मझे जगाया। परेशान क्यों करता है?
'गुरुदेव ! क्षमा चाहता हूँ मै अविनीत हूँ । मैंने आपकि निन्द्रा में बाधा डाली। आज- चौमासी चौदहवी का प्रतिक्रमण करते हुए क्षमापना के लिये आपके चरणों पर हाथ रखा है।
दूसरे दिन राजा मंडक को कहकर शैलकाचार्यने पंथक मनि के साथ विहार किया। पंथक मुनि बड़े प्रसन्न हए। मार्ग भूले गुरुदेव पुन: मोक्षमार्ग पर चढ़ गये । विहार करते करते ४९९ शिष्य धीरे धीरे शैलकाचार्य के पास आ गये। पुन: पुन: एक दूसरे से क्षमापना की। सबने पंथक मुनि को लाख लाख अभिनंदन दिये। भले प्रकार से संयम की आराधना की, शैलकाचार्य श@जय पर पहुंचे । एक माह का अनशन किया। सर्व कर्मो का क्षय किया। सबने निर्वाण प्राप्त किया । धन्य प्रमाद त्यागीगुरु,धन्य शिष्य पंथक...
चौमासी प्रतिक्रमण का नाम सुनकर गुरुदेव चौंके,' हैं? आज चौमासी चौदहवीं। चातुर्मास पूर्ण होगया।'
राजर्षि खड़े हो गये । पंथक मुनि से क्षमापना की और शीघ्र ही प्रतिक्रमण करने बैठ गये। आत्मसाक्षी से खब आत्मनिंदा कीऔर प्रतिक्रमण किया।
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પ. પૂ. આ. શ્રી વિજય અમૃત સૂરીશ્વરજી મ. સા. ના પટ્ટધર |
પૂ આ શ્રી વિજય જિનેન્દ્ર સૂરીશ્વરજી મહારાજની પ્રેરણાથી જૈન શાસન ૧૦૮ ધર્મકથા વિશેષાંકને હાર્દિક શુભેચ્છા |||.
५. पू. आ. श्री विश्य अभृत सूरीश्वर) म. सा. ना पट्टधर
पू. आ. श्री विश्य पिनेन्द्र सूरीश्वर महारानी प्रेरशाथीन शासन १०८ धर्भऽथा विशेषांऽ ने हार्टिशुभेच्छा
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જયશ્રીબેન નવનીતરાય શાહ
सहवार सोसायटी-e, भु.बोराट-39४७१०
R.लावनगर
રાજદર્શન દશમા માળે, સર્વોદયનગર, જવાહરલાલ નેહરૂ માર્ગ, મુલૂન્ડ (३२) मुंबई-४०००८०