Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir

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Page 142
________________ श्रीभोगसार वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, भंगणार . ७-१०-२००८.१०८ धर्म था विशेषis सहन कर पाएगा?' भानजेने ने कहा, 'कुछ हरकत नहीं, मैं भानजा बोला, 'हे मामा ! ऊठो । मैं तुम्हें पृथ्वी में छिपा धन भी आपके साथ कटाई का कार्य करूंगा।' ऐसा कहकर उसने बताऊंगा। ऐसा कहकर स्त्री के देखते ही उसने भूभि मे गाढा दैवी शक्ति से सम्पूर्ण खेत की फसल कटाई थोड़े समय में पूर्ण हुआधन निकाल दिया। देखकर स्त्री बिलख पडी और मन में करके एकत्र कर ली । तत्पश्चात मामा बोला, 'ये सब चौरे घर बोली, 'मैंने चोरी करके जितना धन गुप्त रखा था वह सर्व किस प्रकार ले जायेंगे ?' यह सुनकर वह देवता सर्व चौरे इसने प्रकट कर दिया। इसलीए वाकई में यह कोई डाकिनी ही उठाकर घर की ओर चला। है। 'ननन्द का पुत्र नहीं है, वह यहाँ आया कहाँ से? तो भी उन्हें आता देखकर उस स्त्री ने घर में आया हुआ उसका अनुनय अच्छी तरह से करूं ।नही तो कोपित हुआ है जार पुरुषचरनी में छुपा दिया और लापसी वगैरह मिष्ठान एक तो मेरी सब गुप्त बात प्रकट कर देगा।' एसा सोचकर अंदर से कोठी में छिपा दिये । इतने में भानजे ने मामी को जुहार करते कालुष्य भाव रखकर बाहर से मीठी वाणी बोली : 'हे भानजे! हुए कहा, 'मामा पधारे हैं उनके स्वागत करे।' ऐसा बोलते तुम्हारी बुद्धि को धन्य है, हमारी दरिद्रता का तुमने नाश कर बोलते चौरा का भारा जोर से चरनी में डाला और दाने दिया। निकालने के लिये चौरे कूटने लगा। उसके प्रहार से वह जार श्रेष्ठि ने शुभ दिन देखकर पुत्र विवाह उत्सव का पुरुष को मृतप्राय: होता देखकर अपने भानजे को कहा, प्रारंभ किया। उस समय अपने इष्ट जारपति को उस स्त्री ने 'आप दोंनो थक गये होंगे, इसलीये पहले भोजन कर लो।' आमंत्रण दिया और समझाया,तूं स्त्रीवेष धरकर सब स्त्रियों के यह सुनकर मामा-भानजा दोनों भोजन करने बैठे, तो मामी साथ भोजन करने आना।' शादी के दिन वह जार पुरुष स्त्री चौरा आदि कुत्सित अन्न परोसने लगी। तब भानजा बोला, वेष पहिनकर आया । उसे स्त्रियों के मध्य में बैठा देखकर 'एसा कुत्सीत अन्न मैं नहीं खाऊंगा।' मामी बोली, 'अच्छा भानजा बोला, 'मामा! आजपरोसने के लिए मैं रहूँगा।' मामा खाना मैं कहां सेदूं? भानजा बोला, 'हेमामी ! मैं यहाँ बैठे बैठे ने कहा, 'बहुत अच्छा।' वह परोसने लगा । परोसते परोसते कोठी में प्रत्यक्ष लपसी देख रहा हूँ वह क्यों नहीं परोस रही जब वह उस जार के पास गया तब उसने धीमे से कहा, 'तुझे हो? स्वामी से अधिक कोई नहीं है एसा निश्चय जानना।' यह चरनी मेंजर्जरित किया था वहीतू हैन? उसके 'ना' कहने पर सुनकर मामी तो चकित ही हो गयी। बाद में लपसी परोस कर इस प्रकार दो तीन बार कहा तब अन्य लोगों ने भानजे को उसने विचार किया, यह तो बड़ा आश्चर्य ! मेरी गुप्तता इसने पूछा, 'तू बारबार इस मुग्धबाला को क्या पूछता है ? ' तब कैसै जान ली? वाकई में इसमें कोई भूत, प्रेत, व्यंतर या भानजा बोला, 'इस स्त्री को मै परोसने जाता हूँ तब वह कुछ डाकीनीपना होना चाहिये, नहीं तो वह छिपाया हुआ किस भी लेती नहीं है और सर्व पकवान का निषेध करती है। तब मैं प्रकार जान सका?' तत्पश्चात् भोजन करके दोनों सो गये। उसे कहताहूँ'हे स्त्रीजबतूथोड़ाभीखा नहीं रही है तो स्त्रियों उस समय मौका देखकर वह जारपुरुष निकल गया। के मध्य बैठना तेरे योग्य नहीं है। तू थोडी भूखी नही यह सब देवता था जानता था फिर भी उसने मौन . ८. लग रही है । इस प्रकार बोलकर देवता ने उसको रखा। छ भी परोसा नहीं। तब भोगवती को उसके लिए तत्पश्चात भानजे ने मामा को पूछा, 'यह बडाउचाट हआ। वहाँ से वह उठ कर और गुप्तरीत आपके शामले का विवाह क्यों नहीं करते ? तब मामा ने से लडं लेकर उसकी थाली में परोस दिये जार ने थोड़े कहा, 'हे भानजे ! यह मनोरथ धन बगैर कैसे पूर्ण होगा ?' | खाये और चार लड्डु अपनी कुक्षि में छुपा लिये।

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