Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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मृगावती
वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, भंगणवार . त ७-१०-२००८ .१०८ धर्म था विशेष
।' यह सुनकर गौतम स्वामी ने पूछा, 'हे भगवंत ! तत्काल मृत्यु हो गई। यह देखकर दूसरी स्त्रियों ने 'यासा,सासा' इस वचन का क्या अर्थ है?'
सोचा कि 'इस तरह हमें भी वह दुष्ट मार डालेगा, प्रभ बोले, 'इस भरत क्षेत्र की चम्पानगरी में पूर्व
इसलीये हम इकट्ठी होकर उसे ही मार डाले । ऐसे एक स्त्रीलंपट सुवर्णकार था । वह पृथ्वी पर घुमता था
सोचकर उन सब नि:शंक होकर चारसौ निन्यानवें और जो जो रुपवती कन्याएँ देखता उन्हें पांचसौं
दर्पण उस पर फेंके। सोनी तत्काल मृत्यु पा गया ।। पांचौ सुवर्णमुद्राएँ देकर उनसे ब्याह करता था। इसी
इसके बाद सर्व स्त्रियाँ पश्चाताप करती हुई चितावत गृह प्रकार क्रमानुसार वह पांचौं स्त्रीयों से ब्याह और
को जलाकर भीतर ही रहकर जल मरी। पश्चाताप के प्रत्येक स्त्रीको उसने सर्व अंगो के आभूषण करा दियेथे
योग से अकाम निर्जरा होने से वे चारसौं निन्यानवें जिससे बाद में जिस स्त्री की बारी आती तब वह स्त्री
स्त्रियाँ मृत्यु पाकर पुरुषरुप में उत्पन्न हुई। दुर्दैव योग स्नान , अंगराग वगैरह करके सर्व आभूषण पहिनकर
से वे सब इकट्ठी मिलकर कोई अरण्य में किल्ला बनाकर उसके साथ क्रीडा करने के लिये सज्जबनती थी। उसके
रहते और चोरी करने का धंधा करने लगे थे। वह सोनी | सिवा दूसरी कोई भी स्त्री अपने भेष में कुछ भी परिवर्तन
मृत्यु पाकर तिर्यंच गति में उत्पन्न हुआ। उसकी एक करती तो उसका तिरस्कार करके मार-पीट करता था। पत्नि जिसने प्रथम मृत्यु पाई थी वह भी तिर्यंच में| अपनी स्त्रिीचों की अति इालता से उनके रक्षण में' | उत्पन्न हुई और दुसरे भव में ब्राह्मण' कुल में पुत्र के रुप तत्पर वह सोनी नजरकैद की भाँति - कदापि गृहदार में उत्पन्न हुई। उसकी पाँच वर्ष की आयु होते ही वह छोड़ता नहि था। और स्वजनों को भी अपने घर बुलाता
सोनी भी ब्राह्मण के घर कन्या केरुप में अवतरित हआ। नहीं था तथा स्त्रियों से अविश्वास के कारण वह स्वयं भी
बड़ा भाई अपनी बहिन का ठीक तरह से पालन अन्य के घर भोजन के लिएनजापाता था।
करता था तथापि अति दुष्टता से वह रोया करती थी। एक बार उसकी जाने कि चाह नही थी फिर भी एक बार वर वीज पुत्र ने उसके उदर को सहलाते हुए। उसका कोई प्रिय मित्र अत्याग्रह करके अपने घर
अचानक उसके गुह्यस्थान पर स्पर्श किया, तो वह रोती भोजन करने ले गया, क्योंकि वही मैत्री का आद्यलक्षण
बंद हो गयी। जिससे उसके रुदन को बंद करने का है। सोनी के बाहर जाने पर सब स्त्रियों ने सोचा कि उपाय समझकर जब जब वह रोती तब उसके गुह्य 'हमारे घर, हमारे यौवन और हमारे जीवन को धिक्कार
स्थान का स्पर्श करता तो वह रोना बंद कर देती थी। है कि जिसमें हम यहाँ कारागृह की भाँति बंदिवान होकर
एक बार उसके मातापिता ने उसे ऐसा करते हुए देख रहती हैं। हमारा पापी पति यमदूत की भाँति कदापि लिया सो क्रोध करके निकाल दिया। तब वह गिर की बाहर जाता नहीं है तो परंतु आज वह कहीं गया हैं,
कोई गुफा में चला गया। कालानुसार वह जहाँ चारसौ इसलिये ठीक हुआ है, चलो आज तो हम थोडी देर जो
निन्यावे चोर रहते थे वहाँ पहँच गया और उनके साथ जी मैं आये वैसा करे।' ऐसा सोचकर सर्व स्त्रियों ने
धंधे में शामिल हो गया। स्नान करकें, अंगरांग लगाकर उत्तम पुष्पमाला . उसकी बहिन जो दिज घर में बड़ी हो रही थी, आदि धारण करके सुशोभित वेष धारण किया
५. युवावस्था में पहुँचते ही कुलटा बनी। स्वैच्छा । तत्पश्चात दर्पण लेकर वे सब अपना .
. से घुमती हुई एक गाँव में पहुँची। वहाँ चोरो ने अपना रुप निहार रही थी, उतने मे सोनी 2
गाँव को लूटा और उस कुलटा को पकड़कर आया और यह सब देखकर बड़ा क्रोधित हुआ। C. सबकी स्त्री के रुप में रख ली। कुछ ही दिन में उनमें से एक स्त्री को पकड़कर उसने ऐसा पीटा कि | चोरोको हुआ कि 'यह बिचारी अकेली है, हम सबके हाथी के पैर जीचे रौंदी गई कमलिनी की भाँति उसकी | साथ भोग विलास करने के जरुर थोडे समय में मृत्य
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