Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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श्री अषाढाचार्य
.१०८ धर्म स्थान शासन (अ6पाIs) विशेषis . ता४-११-२००८, भंगणवार
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अषाढाचार्य नामक एक आचार्य शिष्य को धर्म सुनाते हैं । शिष्य मृत्युशय्या पर हैं आचार्य श्री शिष्य को प्रतिज्ञा कराते है कि, वह देवलोक जायेगा तो वहाँ से आकर आचार्य श्री से बाते करेगा और ऊर्ध्वगगति जाने का मार्ग दिखायेगा । नवकारमंत्र सुनते सुनते शिष्य ने सम्मति दे दी और कहा, 'जरुर आऊंगा और मिलूंगा।'
कालानुसार शिष्य देव बना लेकिन वहाँ के | भोगविलास में ऐसा आसक्त हो गया कि वह गुरु के वचन भूल गया । यहाँ गुरुदेव राह देखते रहे।
इस प्रकार से आचार्य महाराज श्री अषाढाचार्य ने चार शिष्यों से देवलोक में से आकर उनसे बात करनी - ऐसे वचन लिये।
कई वर्ष राह देखने पर भी उनमें से आचार्य महाराज से बात करने के लिये या धर्म प्राप्त कराने के लिए कोई आया नहीं। आचार्य महाराज को धर्म पर अश्रद्धा जाग उठी । यह सब तूत है, पाप-पुण्य जैसा कुछ है ही नहीं। तपजपबेकार के प्रयत्न हैं। यूं सोचते सोचते उन्होंने साधुता छोड़ी लेकिन साधू के भेष में ही रहते है और | मन ही मन में संसारी बनने का तय करते हैं।
चोथा शिष्य - जो देवलोक में है, उसने अवधिज्ञान से यह बात जानकर गुरुजी को संसारी होने से बचाने का निश्चय किया और इसी कारण से पृथ्वी पर आकर गुरुजी के । विचरण मार्ग पर आकर दैवी नाटक शुरू किया । गुरुजी . नाटक देखने में लीन हुए । नाटक देखते देखते छ: . माह खराब हो गये।
देव ने मायावी छ: लड़के बनाये । वे 2 0 आगे विहार करके जाते आचार्य महाराज को जंगल में मिले। एकांत जंगल में सुंदर आभूषण पहिने हुए लड़के मिलते ही अषाढ मुनि होश गंवा बैठे । लड़को के सब सोने और ।
जवाहरात मढ़े गहने उतार लिये और लड़के को मार कर वहाँ से आगे बढ़े।
मार्ग मे एक साध्वीजी से मिले । साध्वीजी के साथ | धर्मों की ठीकठीक बातें चलीं। सूरीजी बड़े शरमाये और महसूस करने लगे कि कुछ गलत हो गया है। आगे विहार करने पर एक बड़ा सैन्य मिला, जिसमें राजा-रानी वगैरह का बड़ा परिवार भी शामिल था। जैन साधू कि भेंट होने से सैन्य के आदमी गुरुजी के
चारोंओर खड़े हो गये । गुरुजी को भिक्षा के लिए बिनती की। गुरुजीने आनकानी करके मना कर दिया । वे मनमें थोडा घबराये । अरेरे... मैंने कैसे पाप किये? मेरी सब पोल खुल जायेगी। राजाने जरा जोर से झोली पकडकर खींची, गहने उछलकर बहार गिर पडे । गुरुजीथर थर काम्पने लगे और अपना मुँह छिपाकर रोने लगे।
श्री
अषाढाचार्य
यह सैन्य राज-रानी वगैरह चौथे शिष्यजो कि देवथा, उसका नाटक
था । गुरुजी का पश्चाताप देखकर वह प्रकट हुआ और गुरुजी को दैवी रिद्धि बताई तथा कहा, 'यह सब धर्म का प्रभाव है। आपकी कृपा का फल है । स्वर्ग,मोक्ष, पुण्य पाप सब सचमुच है ही।' ।
नया देव देवलोक में पैदा होता है तो वहाँ नाटक - चेटक देखने में ही हजारो वर्ष निकल जाते हैं । इसलिये वह . तुरंत वहाँ से पृथ्वी पर नहीं आ सकता है । इससे लोग . समझते हैं कि देवलोक जैसा कुछ है ही नहीं । परंतु
यह बात झूठी है। शास्त्र सच्चे हैं। पुण्य-पाप के
फल जानकर पुन: दीक्षा ली । श्रद्धा में दृढ बने और उच्च भावना व्यक्त करते हुए उसी भव में मोक्ष