Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir

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Page 132
________________ मृगावती .१०८ धर्म थान शासन (अ64Is) विशेषis • त.४-११-२००८, मंगलवार १-२१ . अं. १ सुरप्रिय नामक यक्ष चित्रीत की। तत्पश्चात वह साकेत नगर में रहता था । बालचित्रकार यक्ष की और वहाँ के लोग उस यक्ष को शीश झुकाकर बोला, 'हे खूब मानते थे । हर साल सूरप्रिय देव अति चतुर उसकी यात्रा के दिन उसके चित्रकार भी आपका चित्र विचित्र रुप को चित्रित करते बनाने में समर्थ नहीं है, तो मैं थे । वह यक्ष उस हरेक गरीब बालक मात्र ! उसके चित्रकार को मार डालता था सामने क्या हूँ ? यद्यपि हे । यदि चित्र चित्रित नहीं किया जाता तो वह यक्ष पुरे वर्ष | यक्षराज ! मैंने मेरी शक्ति से जो कुछ नाया है, वह भर लोगों का पकड़ पकड़ कर नाश करता था। इस युक्त या अयुक्त जो भी हो उसे स्वीकार करें और कुछ प्रकार चित्रकारों का वध हो जाने के कारण कई भी भूलचूक हुई है तो उसके लिए मुझे क्षमा करना; चित्रकार परिवार वहाँ से भागकर दूसरे नगर में चले कारण आप निग्रह और अनग्रह करने में समर्थ हो।' गये। इस दुष्ट यक्ष के डर से राजा ने अपने सैनिक को चित्रकार की विनय से भरी वाणी से यक्ष प्रसन्न होकर भेजकर उन चित्रकारो को वापिस बुलवाया और उन बोला, 'हे चित्रकार वर माँग।' वह बाल चित्रकार बोला, सर्व के नामों की पर्चिया एक घड़े मे डाली, और जिसका 'हे देव। यदि आप इस गरीब परप्रसन्न हा होतो मैं एसा नाम आता वह यक्ष की यात्रा के दिन चित्र चित्रित करें वरदान माँगता हूँ कि अब किसी चित्रकार को मारे नहीं। और यक्ष उसका वध करे-ऐसा निर्णय लिया गया। इस यक्ष बोला 'मैने तुझे मारा नहीं, तब से ही कीसी को भी प्रकार लम्बा कालव्यतीत हुआ। मारना अब बंद है। परंतु हे भद्र। तेरे स्वार्थ की सिद्धि के एक बार कोशांबी नगरी से चित्रकला सीखने | लिए अब दूसरा वरदान माँग ले।' युवा चित्रकार बोला, के लिये किसी चित्रकार का पुत्र साकेतपुर नगरी में | 'हे देव! आपने इस नगरी के महामारी हट यी, उससे ही आया और एक चित्रकार की वृद्ध स्त्री के घर ठहरा । उसे मैं कृतार्थ हो गया हूँ।' यक्ष विस्मित होकर बोला, ' उस वृद्ध के पुत्र से मैत्री हो गई। दैवयोग से उस वर्ष उस कुमार। परमार्थ के लिये वरदान मांगा, जिसमे मैं तुझ वृद्ध के पुत्र के नामकी ही चिठी निकली, जो कि वाकई पर पुन: संतुष्ट हुआ हूँ। इसलीये स्वार्थ के लिये कछ में यमराज का आमंत्रण ही मानी जाती थी । यह खबर वरदान माँग ले।' चित्रकार बोला, 'हे देव ! यदि विशेष सुनकर वृद्ध रुदन करने लगी। यह देखकर कौशांबी के संतुष्ट हुए हो तो मुझे एसा वरदान दो कि जिससे कोई युवा चित्रकार ने रुदन करने का कारण पूछा; 'तब वृद्धा मनुष्य, पशु या अन्य को मैं एक अंश के अनुरुप उसके ने अपने पुत्र पर आ पडी विपदा की बात कह सुनायी। | पूरे स्वरुप को वास्तविक रुप से आलेखित करने की वह बोला, माता ! घबराना मत, आपका पुत्र घर ही | शक्ति मुझे प्राप्त हो' यक्ष ने 'तथास्तु' कहा। तत्पश्चात रहेगा, मैं जाकर चित्रकार भक्षक यक्ष का चित्र .. . नगरजनो से बहुमान पाकर वह उस वृद्धा तथा बनाऊंगा।' वृद्धा ने कहा, 'वत्स ! तू भी मेरा ५. अपने मित्र चीत्रकार से अनुमति लेकर पुत्र ही है।' वह बोला, 'मात मैं हूँ मगर मेरा 5 7 शतानिकराजासे अधिष्ठितकौशांबी नगरी भाई स्वस्थ रहे ।' तत्पश्चात वह युवक त में आया। चित्रकार ने तप करके, स्नान करके चंदन का कौशांबी मे एब बार राजा लक्ष्म से गर्वित विलेपन किया, मुख पर पवित्र वस्त्र आठ परतें एसीराज्यसभा में बैठा था। उस समय देश-परदेश करके बांधा । नई तुलिका व सुंदर रंगो से यक्ष की मूर्ति | आतेजाते एक दूत को पूछा, 'हे दूत । जो अन्य राजाओं AN

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