Book Title: Jain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 01 to 25
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
View full book text
________________
========0)
' पिंडवाडा में आचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी !! के दीक्षा शताब्दी वर्ष समारोह
1
1
1
11
मगर वदी २ को प्रातः गुरुमंदिर में भक्तमर पाठ, । बाद में गुरु मूर्ति का पक्षाल, अंगरचना एवं रथ यात्रा ।। का वराडा तथा दोपहर को स्वामी वात्सल्य हुआ । संध्या गु भक्ति के गीत एवं आरती हुई ।
मगर वदी ३ को प्रातः शत्रुंजय तीर्थ पर दीक्षा शताब्दी महोत्सव में संलग्न होने के लिये पांच सौ भाग्यशानियों ने बसों द्वारा प्रस्थान कीया ।
मार सर वदी ६ को पू. मुनि श्री चरणगुण विजयर्ज आदि ठाणा की निश्रा में मुनि श्री गंभीररत्न विजयर्ज ने अपने प्रवचन में मृदु एवं सरल हिन्दी भाषा में दर्शाया कि...
आचार्य प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. संवत १९५७ मगसरी ६ ( मारवाडी ) के दिन शत्रुंजय तीर्थाधीराज की तले की छत्र छाया में प्रवज्या अंगीकार की थी । दीक्षा आज सौ वर्ष पूर्ण हो गये हैं ।
वी शासन की परम्परा में जगद्गुरु हीरसूरीश्वरजी म. सा. के बाद सर्वाधिक और सर्वागिंण तरीके शासन सुरक्षा आराधना प्रभावना निमित्त रूप ऐसे विशाल श्रमण संघ के सर्जन करने वाले श्रुतोद्धार और क्रियोद्धा जैनोद्धार एवं जीर्णोद्धार, आत्मोद्धार और विश्वोद्ध र के कर्ता गच्छपक्ष और समुदाय से भेदरहित तरीके, जिनकी महानता को एक आवाज से सबने स्वीकार है । ऐसे कलिकाल - कल्पतरु, परम पवित्र मूर्ति परम पूज्य आचार्यदेवश्री प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. थे । अनीको स्वर्गस्थ हुए ३२ वर्ष हो गये हैं लेकिन आपका नाम एवं स्मरण लोगों के मन मस्तिष्क में छाया हुआ है । पूज्यश्री की संयम शताब्दी
अभी
। । वर्ष पूरे देश के प्रत्येक कोने कोने में मना रहे हैं ।
1
पिछले वर्ष के इतिहास में तीर्थाधिराज की तलेटी में
1
1
1
। संयम साम्राज्य स्वीकारने का सद्भाग्य आपश्री के संयमताब्दी के दिन परम पावन भूमी में ही जिन -------------
==============I
DI
भक्ति और गुरु भक्ति का महोत्सव मनाने का होने से सभी के दिल रोमांचित एवं प्रफुलित हुए हैं । व पर 1 अनेक समुदाय के पूज्य मुनिवरों की निश्रा एवं ।। सानिध्य में यह महा महोत्सव सम्पन्न होगा ।
D
हे गुरुदेव आपश्री को जन्म लेना पड़ा इसलिये आपका जन्म हुआ, परन्तु आपको जन्म के विनाश के लिये ही जीना पडा था । इंसीलिये ही सिद्धगिरी के सिद्ध मुनि के दर्शन जग गये । एवं हमेंशा जागी हुए जीवन को सुंदर बनाने के लिये संयम के स्वग में सिद्ध शैलेष की तलेटी में संवत १९५७ मगसर दी ६ ( मारवाडी) के दिन शिवमंगल की तलेटी में संयम को स्वीकार कर प्रगुरु श्री वीरवीजयजी के हाथ से क्षित होकर गुरु दानसूरीजी के शिष्य हुए । संयम में स्वाध्याय, सहिष्णुता, शौर्य, समर्पण की पंचाग द्वारा विनय, वैयावच्च, वैराग्य, वात्सल्य, वैर विरोध, विषाद वैमनस्य और विभावों को समाप्त कर दिये ।
-
चपणा
नम्रता - नीरिहता, निर्मलता और नैष्ठिक ह्मचर्य की गुण गरीमा से आप गुरु के द्वारा गुस्ता-नूरीपद के साम्राज्य धारक बनकर सारणा वारणा पडिचोयणा पूर्वक वीर के वारस विशाल वंश वृक्ष का सर्जन कीया । सूरी रामचंद्र - जंबु हीर - राजतिलक, भुवनभानु जयघोष चंद्रशेखर - लचंद्र आदि सूरी मुनिवृंद के गुरु प्रगुरु प्रप्रगुरु आदि पदों को प्रदान कर अडसठ वर्ष के निर्मल दीक्षा पर्याय को पालकर आप परम ब्रह्म में लीन बन गये ।
-
-
-
VI 11
II
11
आज आपकी संयम शताब्दी के शुभ अवसर पर आपके शिष्यवृंद के प्रेरक बल को प्राप्त कर आपके दर्शाये हुए मार्ग पर अग्रसर होने के लिये हम सभी ।। कृत संकल्प है ।
IN 11
11
भवदीय कल्याणजी सौभागचंदजी जैन पेढी पिण्डवाडा ओ. आर. महेता
2020
1