Book Title: Jain Sahitya me Vikar Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh View full book textPage 8
________________ चारोंस्तम्ब के लेख अत्यन्त अनुसन्धान और गवेषणापूर्वक लिखे गये हैं।शुष्क और नीरस विषय होते हुये भी प्रवीण लेखक ने अपनी वशीकरण लेखनी द्वारा उसे अत्यन्त रुचिकर बनाया है। उन्होंने जैनसाहित्य की निपक्ष विद्वतापूर्ण समालोचना की है। सम्भव है विचारशील पाठक विद्वानलेखक की युक्तियों से पूर्णरूपेण सहमत न हों, वे कितने ही स्थानों में मत-भेद रखते हों। मतभेद बुरी चीज़ नहीं, यदि वह सभ्यता की सीमा का उलंघन न करें। विश्वास अच्छी चीज़ हैं किन्तु अन्धविश्वास हानिकारक है।अन्धविश्वासी विवेक शपथ मनुष्योंने संसार में अनेक अनर्थ उपस्थित किये हैं, संसार को सुखशान्ति को नष्ट करके उसे नर्कतुल्य बना डाला है। इसीलिये जैनदर्शन अन्धविश्वास को, पक्षपात को स्थान नहीं देता जो भी बात हो वह परीक्षा की कसौटी पर कसीजानी चाहिये २ रूढिभक्त, अन्धविश्वासी अथवालकीर का फकीर बने रहने वाले समाज की इस वैज्ञानिक युग में मिट्टी खराब है। जैन धर्म परीक्षा प्रधानी धर्म हैं, उसके अनुयायी अन्धविश्वासी अथवा पक्षपाती बने रहें, यह शोभा नहीं देता ।अन्धविश्वासी समाज नास्तिकता, कायरता, परतन्त्रता आदि के बन्धन में जकड़ जाता है ३ अत समाज की वर्तमान दुरावस्था का सुधार करने के लिये जैन साहित्य में उत्पन्न हुये विकार को अनेकान्तवाद की पवित्र सरिता में धोने के लिये कटिबद्ध हो जाना चाहिये। व्यवहार कुशल व्यापारनिपुण जैनसमाज को भविष्य मे आने वाली आपत्तियों के प्रतिकार का अभी से उपाय कर लेना चाहिये। प्रतिवर्ष लाखों रुपया धार्मिक मुकदमेबाजी में व्यय करने वाली मन्दिरों की दीवारों पर मनो सोना लिपवाने वाली, लाखों रुपया रथयात्रा में बहानेवाली और असंख्यघन मनिवंशियों के लिये लुटा देने वाली जैनसमाज "इकबाल" के इस शेरको विचार पूर्वक पढे और समझे। अगर अब भी न समझोगे तो मिल जाओगे दुनिया से। तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।। हिन्दी भाषा भाषियों का ऐसा अनुपम पुस्तक पढ़ने का मौभाग्य प्राप्त होगा, इसके लिये अनुवादक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं। पहाड़ी-धीरज, दिल्ली। ज्येष्ठ कृष्णा ५ वी० नि० सं० २४५८ अयोध्याप्रसाद गोयलीय "दास"Page Navigation
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