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जैन साहित्य संशोधक
कडुआ मतकी पट्टावली
[ खंड ३
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(१) प्रथमतः सा कडुआ नांडोलाइ ग्रामे महं काहानजी भार्या बाइ कनकादे. संवत् १४९५ प्रसूतपुत्र नामतः महं कडुआ वैराग्यवान् आंचलीयाका श्रावक नियागी वेशधरका उपदेशसें वैराग्य हुवा । मातपिता की आज्ञा न मीलनेसे वहांसे चलकर अमदावाद सं० १५१४में आया । रूपपुरमे आगमिआ गच्छका पन्यास हरिकीर्ति पासे शास्त्र पढे । और चैत्यवासीका आचरण जाण्या । दशमा अच्छेरा " संपय दसम अच्छेरए " इत्यादि षष्टिशतक ग्रंथे, तथा " सेसा हुंडाव०" इत्यादि संवपट्टक ग्रंथे, श्रीमहानिशीथसूत्रमें श्रीवीरे भाग्या है कि मेरेसें १२०० वर्ष पीछे कुगुरुओ पेदा होगा। तब पन्यासे कर्तुं कि तुम संवरी श्रावक हो । तबसे संवरी वैरागी बालब्रह्मचारी अकिंचनी अममत्व हो करके ग्रामोग्राम विचरने लगे। बहोत प्राणीओकों प्रबोधे । और इसमुजब प्ररूपणा प्रवृत्ति व्यवहार चलाया - मंदिर में पाधडी उतार के देव वांदवा १. श्रावककी प्रतिष्ठा २. पुनमकी पाखी ३. पर्युषणा चोथकी ४. मुहपत्ति चरवलो धरणा ५. बहुधा सामायिक करना ६. पर्व शिवाय पोसह लेना ७. द्विदल टालना ८. मालारोपण नहि ९. स्थापना प्रमाण १०. तीन थुई कहेवी ११. वासी कठोल तजवा १२. पोषध त्रिविहार चोविहार १३. पंचांगी सूत्रानुसार मान्य १४. सामायिक लेके इरियावही करना १५. वीर पंचकल्याणक मान्य १६. बीजुं वांदण बेठेहि देना १७. साधुकृत्यविचार १८. अधिक श्रावणे दुजे श्रावणे पोसण तथा द्वितीयकार्तिके चोमासी १९. स्त्रीयां प्रभुपूजा करे २०. संप्रति दशमा अच्छेरा चलते है २१ . इत्यादि बहोत बो रूपया । शास्त्राक्षर मुजब सामायिक पडिकमण करणा, और संवरी गृहस्थका १०१ बोल प्ररूप्या । ते इत्थं-संयमार्थी संवरी गृहस्थके वेशमे रहकर दीक्षाका परिणाम रक्खे और इस मुजब वर्ते-नीची दृष्टिसे चले १ रात्रे विना धूंच्या न चले २. स्थंडिल सिवाय राते बहार न जाय ३. मार्गे चालतां बोलना नहि ४. सचित्त भोजन वर्जे ५. दो घडि दिन थके चोविहार ६. अजीढुं जुटुं न छांडे, अतिमात्राएं न जिमे, जिमतां न बोले ७. द्विदल टाले ८ हाथसे किसी चीजको फेकना नही ९. किसी चीजको खेचना नही १०. स्थंडिलकी शुद्धि करना १९. लघुशंका शुद्धि करना १२. मूत्र भाजन भरके न रखना १३. पुंजी प्रमार्जी परठना १४. कठोर भाषा न बोले १५. पूंज्या विना खूजली न खणे १६. पांच स्थावरकी जयणा १७. निवाणसे स्वयं जल नहि लेना १८. अणछाण्या जले व प्रक्षालना नहि १९. स्वयं आरंभ न करे २० वींजणे पवन न ढोले २१. स्वयं हरिकाय न छेदे २२. त्रस जीवको न दूभे २३. त्रीस जीवको न हणे २४. सर्वथा मृषा न बोले २५. अदत्त न लेवे २६. मानुषी ओर पशु खीका संघह टाले २७. स्वयं परिग्रह न राखे २८. पीछली राते चार घडी पछी न सूवे २९. उघाडे मुखे न बोले ३०. राते प्रथम प्रहरे न सूवे ३१. कारण विना दिवसे
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