Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रथम संस्करण का प्राक्कथन जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । इससे पूर्व प्रकाशित दोनों भागों का विद्वज्जनों व अन्य पाठकों ने हृदय से स्वागत किया एतदर्थ संस्थान के उत्साह में वृद्धि हुई है। यह भाग भी विद्वानों व सामान्य पाठकों को पसंद आएगा, ऐसा विश्वास है। प्रथम भाग में जैन संस्कृति के आधारभूत अंग आगमों का तथा द्वितीय भाग में अंगबाह्य आगमों का सर्वांगीण परिचय प्रस्तुत किया गया है । प्रस्तुत भाग में इन सब आगमों के व्याख्यात्मक साहित्य का सांगोपांग परिचय दिया गया है। इन तीन भागों के अध्ययन से पाठकों को समस्त मूल आगमों तथा उनकी विविध व्याख्याओं का पूर्ण परिचय प्राप्त हो सकेगा। ___आगमिक व्याख्याएँ पाँच कोटियों में विभक्त की जाती हैं : १. निर्यक्तियां, २. भाष्य, ३. चूर्णियाँ, ४. संस्कृत टीकाएँ और ५. लोकभाषाओं में विरचित व्याख्याएँ। प्रस्तुत भाग में इन पाँचों प्रकार की व्याख्याओं तथा व्याख्याकारों का सुव्यवस्थित परिचय दिया गया है। ___ अन्य भागों की तरह प्रस्तुत भाग के सम्पादन में भी पूज्य दलसुखभाई का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है एतदर्थ मैं आपका अत्यन्त अनुगृहीत हूँ। ग्रन्थ के मुद्रण के लिए संसार प्रेस का तथा प्रफ-संशोधन आदि के लिए संस्थान के शोध-सहायक पं० कपिलदेव गिरि का आभार मानता हूँ। पार्श्वनाथ विश्राश्रम शोध संस्थान । मोहनलाल मेहता वाराणसी-५ अध्यक्ष १५-१२-६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 520