Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 11
________________ अन्तस्तत्त्व पृष्ठाङ्क - तीनों खण्डों की विषयवस्तु का परिचय सत्ताईस - संकेताक्षर-विवरण तेंतालीस तृतीय खण्ड भगवती-आराधना आदि सोलह ग्रन्थों की कर्तृपरम्परा त्रयोदश अध्याय भगवती-आराधना प्रथम प्रकरण-भगवती-आराधना के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण क-यापनीयग्रन्थ मानने के पक्ष में प्रस्तुत हेतु ख-सभी हेतु असत्य या हेत्वाभास ग-दिगम्बरग्रन्थ होने के अन्तरंग प्रमाण : यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादन१. सवस्त्रमुक्तिनिषेध १.१. आचेलक्य मुनि का अनिवार्य प्रथम धर्म १.२. श्रावक का लिंग अपवादलिंग १.२.१. सपरिग्रह एवं मुनिनिन्दाकारणभूत लिंग अपवादलिंग १.२.२. गृहिभाव का सूचक लिंग अपवादलिंग १.२.३. मुक्ति के लिए त्याज्य लिंग अपवादलिंग १.२.४. श्राविका का लिंग अपवादलिंग १.३. भक्तप्रत्याख्यानकाल में ग्राह्य लिंग का निर्देश ... १.४. प्रेमी जी की महाभ्रान्ति in no w w w ovo or a no Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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