Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 15
________________ ॥ सत्तत्त्व मीमांसा ॥ लेखक श्रीमविजय कमलसूरिश्वर चरणोपासक मुनि लब्धिविजय ।। worrorman प्रिय पाठकगण ! इस दुनियामें मुख्यतया दो तरह के धर्म मचलित है । एक सम्यक्त्व धर्म और दुसरा मिथ्यात्व धर्म। इस जगतमें अनादि कालसे यह दोनों ही धर्म उपलब्ध होते है। और यह आपसमें ऐसे विमुख रहते है कि यदि एक धर्मावलची जीर (मनुप्यो दूसरेसे एकही समयमें और एकही जगहपर मिले तो वे आपसमें शान्ति पूर्वक विना कुछ उपद्रव किये नहीं रह सक्ते। और ऐसेमें जिस धर्मावलम्बीकी शक्ति दूसरेसे अधिक लपान होती है वह अपनी सत्ता दूसरोंपर स्थापित कर देता है। सम्यक्त्व के उदयम जीव अपने दिनों को बडे मुससे • व्यतीत करताहै और मरनेपरभी अच्छी गतिको माप्त होता है, और उस धर्म को हरदम यम रसनेवाला प्राणी थोडे ही समयमें गोक्ष नटपर भवरों के घोचमें पड़ी हुइ अपनी टूटी फूटी

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