Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 17
________________ ४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन महादेव, कामारि एवं चतुरानन मुख्य हैं। साथ ही इन्द्र ( महेन्द्र सहस्राक्ष ), सूर्य (आदित्य), कुबेर, वामन देव, राम, कृष्ण, इन्द्राणी एवं विन्ध्यवासिनी देवी के नामोल्लेख भी उल्लेखनीय हैं ।" बौद्ध देवकुल से सम्बन्धित बुद्ध, सिद्धार्थ, स्वयंबुद्ध तथा अक्षोभ्य जैसे नाम भी महत्त्वपूर्ण हैं । भगीरथ और गंगा तथा शिव के स्थान पर इन्द्र के ताण्डव नृत्य के सन्दर्भ भी ब्राह्मण परम्परा के अनुकरण की दृष्टि से उल्लेख्य हैं । इसी प्रकार सोलह संस्कारों तथा वर्णों की चर्चा सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । प्रस्तुत पुस्तक में महापुराण की सामग्री के अवगाहन और अध्ययन के आधार पर उसमें उपलब्ध कलापरक सामग्री का विस्तृत उल्लेख हुआ है। साथ ही पूर्ववर्ती ( पउमचरिय, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण) एवं समकालीन तथा परवर्ती दिगम्बर ग्रन्थों की सामग्री से उसकी तुलना करने का भी प्रयास किया गया है जिससे महापुराण की कलापरक सामग्री का महत्त्व पूरी तरह स्पष्ट हो सके । आवश्यकतानुसार तिरसठ शलाकापुरुषों से सम्बन्धित श्वेताम्बर परम्परा के चरित ग्रन्थों (त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र – हेमचन्द्रकृत – १२वीं शती ई० का उत्तरार्द्ध ) से भी महापुराण की कलापरक सामग्री की तुलना की गयी है जिससे दोनों परम्पराओं में विभिन्न सन्दर्भों में मिलने वाली समानता और अन्तर स्पष्ट हो सकें । इस तुलना से ही यह स्पष्ट हुआ कि दिगम्बर परम्परा में मल्लिनाथ को नारी तीर्थंकर नहीं बताया गया है और बाहुबली कैवल्य प्राप्ति के पूर्व उनके समीप उनकी बहनों— ब्राह्मी एवं सुन्दरी के स्थान पर विद्याधरियाँ आयी थीं । इन्हीं विद्यार्धारियों ने उनके शरीर से लिपटी लतावल्लरियों को हटाया था। महापुराण के उपर्युक्त सन्दर्भ की पृष्ठभूमि में ही बादामी, अयहोल, एलोरा, देवगढ़ एवं खजुराहो जैसे दिगम्बर स्थलों की बाहुबली की मूर्तियों में दोनों पावों में बाहुबली के शरीर से लिपटी लता- वल्लरियों को हटाती हुई विद्याधरियों की आकृतियाँ भी उकेरी हैं। महापुराण की रचना राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष - प्रथम एवं कृष्णद्वितीय के शासनकाल और क्षेत्र में हुई थी, अतः उसकी कलापरक सामग्री का राष्ट्रकूट कला केन्द्र एलोरा की जैन गुफाओं (सं० ३०-३४) की मूर्तियों की शास्त्रीय और साहित्यिक पृष्ठभूमि की दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है । ज्ञातव्य है कि महापुराण एवं एलोरा की जैन गुफायें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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