Book Title: Jain Lakshanavali Part 3
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 9
________________ (5) श्री प्रकाशचन्द्र जी एम. ए. प्राचार्य समन्तभद्र विद्यालय से पाण्डुलिपि के तैयार करने में सहयोग मिला है । श्री विद्यावारिधि डा. ज्योतिप्रसाद जी जैन लखनऊ ने हमारे निवेदन पर अंग्रेजी में फोरवर्ड लिख देने की कृपा की है । आपने यह महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिया है कि जो बहुत से लक्ष्य शब्द इस संस्करण संग्रहीत नहीं हो सके हैं उनका संकलन करके परिशिष्ट के रूप में एक पुस्तिका को प्रकाशित कराया जाय, जिसमें जिन शेष ग्रन्थों का परिचय नहीं कराया जा सका है उनके परिचय के साथ ग्रन्थकारों के संशोधित समय आदि के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला जाय । श्रापका यह सुझाव बहुत उपयोगी है, पर उसके लिये अनुकूल कभी वैसी परिस्थिति निर्मित होगी, इस विषय में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता । श्री पं. पद्मचन्द्र जी शास्त्री एम्. ए. ने पहिले और अन्तिम प्रूफों को देखकर मुद्रण के कार्य में सहायता की है, साथ ही प्रसंगवश यदि कभी किसी ग्रन्थ के सन्दिग्ध स्थलविशेष को देखना पड़ा तो वे उसे यथासम्भव देखकर उसकी सूचना मुझे करते रहे हैं ! श्री सत्यनारायण जी शुक्ला (कंपोजिंग गीता प्रिंटिंग एजेंसी) ने ग्रन्थ के मुद्रण कार्य में काफी रुचि दिखलायी है । यदि कभी संशोधन कार्य कुछ बढ़ भी गया तो इसके लिये उन्होंने कभी विमनस्कता नहीं प्रगट की । इस प्रकार इन उपर्युक्त सभी महानुभावों के यथायोग्य सहयोग के बल पर ही यह कार्य सम्पन्न हुआ है। अतः मैं इन सभी का हृदय से प्राभार मानता हूँ । महावीर जयन्ती। १०-४-७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only बालचन्द्र शास्त्री हैदराबाद www.jainelibrary.org

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