Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ २९४ जैनहितैषी [भाग १४ morror लग जाते हैं; धर्मात्माओंका रूप बनाकर कभी दर्शन देता है तो जातीय समाचार तो उनको धर्मका उपदेश देने लगते हैं और अनेक उसमें नाममात्रको ही रहते हैं, बहुत करके लेख प्रकारकी आखड़ी तथा नियम लेनेके लिये बाध्य या शास्त्रोंके अनुवादका सिलसिला ही जारी किया करते हैं, जिससे वे लज्जित होकर ज्यों रहता है । इन समाचारपत्रोंके अतिरिक्त जातिके - त्यों अपना पिंड छुड़ाते हैं। फिर जब वे सभामें लोगोंसे मिलकर अपनी जातिकी दशाके विषबैठते हैं और किसी प्रस्तावपर अपनी सम्मति यमें बात चीत करते रहना भी इनको बहुधा देते हैं तो जातिका पूरा पूरा अनुभव न होने पसंद नहीं हुआ। इसलिये जातिकी दशा और और सभाकी परिस्थितिको भी ठीक ठीक न उसके समाचारोंसे तो ये लोग बिल्कुल ही अनजाननेके कारण उनकी वह सम्मति बिल्कुल जान रहते हैं । हाँ, अंग्रेजी भाषा और उसमें ऐसी ही बेतुकी हुआ करती है जैसी कि उस वर्णित विषयोंका इनको एक प्रकारका व्यसन अनाडी अंग्रेज हाकिमकी जो किसी हिन्दस्तानी सा हो जानेके कारण ये लोग बहत बहत मल्य सभामें आने और सभाकी तरफसे फूलोंका देकर भी अंग्रेजी समाचारपत्रोंको मँगाते हैं हार गलेमें पड़ जाने पर सम्मति प्रकाश किया और उनके द्वारा बेजरूरत भी दुनिया भरकी करता है। ऐसी हालतमें सभाके लोग बाबूसाह- व्यर्थकी राजनैतिक बातोंको पढ़कर अपना बकी उस सम्मति पर कुछ भी ध्यान नहीं देते दिल बहलाते रहते हैं और आपसमें भी इस ही बल्कि उनको उपेक्षाकी दृष्टिसे देखने लग जाते प्रकारकी चर्चा किया करते हैं कि जापानने हैं । बाबूसाहब इससे अपना बड़ा भारी रूसका अमुक देश ले लिया है, चीन यह कहता अपमान समझकर . यही सोचने लग जाते है और अमरीकामें सभापति चुननेके वास्ते हैं कि इन मूल्की सभामें सम्मलित होकर यह सलाह हो रही है । इत्यादि । तो हमने बहुत ही ज्यादा भूल की जिसे फिर नहीं हा । तात्पर्य इस सारे कथनका यह है कि न तो करेंगे,अर्थात् अबसे फिर कभी सभामें नहीं आयेंगे। "। हमारे पंडित लोग ही जातिका उद्धार कर सके हैं . इस प्रकार हमारे इन बाबू लोगोंके हाथोंसे और न हमारे बाबू लोग ही जातिके उन्नतिमें लगे भी जातिका कुछ उपकार या सुधार नहीं हो .. हुए हैं, इसी कारण यह जाति अन्य सब जातियोंसे -रहा है । बाबू लोग जातिके वास्ते कुछ भी काम बहुत पीछे पड़ी हुई है और नीचेको ही गिरती नहीं कर रहे हैं और बिल्कुल ही उपेक्षित हुए चली जाती है। बल्कि अपनी मनुष्यगणना कमती बैठे हैं; मानो इनके जिम्मे जातिका कुछ कर्तव्य ही नहीं है । ये लोग जातिके वास्ते कछ करके होते रहनेसे तो शीघ्र ही समाप्त हो जानेकी भी तो क्या दिखाते इनको यह भी खबर नहीं है कि र र सूचना दे रही है। इस कारण इसकी रक्षाका तो - बहुत ही जल्द कोई उपाय होना चाहिये और इस समय जातिमें क्या हो रहा है, और क्या ऐसे विद्वान पैदा करने चाहिये जो इस जातिको हालत बीत रही है । क्यों कि देशभाषामें छपनेवाले जातिके समाचारपत्रोंको तो यह लोग 3 उन्नति-शिखर पर चढ़ावें और अन्य सब जातिपढ़ना पसंद नहीं करते और अंग्रेजी में जो एक योसे आगे निकाल कर ले जावें। यह कार्य मासिकपत्र निकलता है वह अव्वल तो कई कई ऐसे ही विद्वानोंसे चल सकता है जो संस्कृत और महीनेकी डुबकी मारता रहता है और दूसरे जब अंग्रेजीके पूरे पंडित हों, अपने धर्मके पूरे ज्ञाता For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66