Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 51
________________ अङ्क १०-११] तामिल भाषामें जैनग्रंथ । और अत्युत्तम होनेका मान प्राप्त है । बड़े बड़े हैं। काव्यकी शैली मनोहारिणी है और जिन टीकाकार अक्सर प्रामाणिक ग्रंथके तौर पर शब्दोंका इसमें प्रयोग किया गया है वे 'अजेय' इसमेंसे अनेक वाक्योंको अपनी टीकाओंमें कहे जाते हैं। प्राचीन तामिल विद्वान जब उदधृत किया करते हैं । यह पुस्तक लंकाके ता- इस काव्यको पढ़ा करते थे तब इसके रचयिमिल लोगोंके बड़े कामकी है; क्योंकि यही एक ताका नाम मालूम न होनेके कारण इसके प्राचीन पुस्तक है जिसमें रावणके समयके बाद कर्ताको 'थोलमोलिथेवर ! ( Tholamoli लंकाका वर्णन पाया जाता है और जिसमें, स्वयं thewar) अर्थात् " शब्दाजेयके ” तौर पर ग्रंथकर्ताके कथनानुसार, उस टापूमें बहुत पूजी पुकारा करते थे । तभीसे यह ग्रंथ शब्दाजेजानेवाली काव्यकी नायिका पट्टिनी कन्निका यका बनाया हुआ कहा जाता है। इसमें ( Pattini Kannika ) का जीवनवृत्तांत २१३१ पद्य और १२ परिच्छेद हैं जिनमें जैनदिया हुआ है । यद्यपि इस काव्यकी कथा पुराणोक्त नौ वासुदेवोंमेंसे “प्पृष्ट ' (त्रिपृष्ठ ) पूर्णरूपसे जैनकथा नहीं है तथापि इसके वासुदेव और उसके शत्रु 'अयकृव' प्रथिरचयिताके जैन होने में संदेह नहीं है। क्योंकि (प्रति ) वासुदेवकी कथा लिखी हुई है। यह परलोकवासी वी. कनकसबाई पिल्ले जो तामिल- कथा गुणभद्राचार्यके उत्तरपुराणसे ली गई के एक बड़े भारी विद्वान थे, अपनी किताब है (?) इस काव्यका रचनाकाल अभी तक " The Tamils Eighteen hundred ठीक तौरसे मालूम नहीं हुआ, परंतु चूलामणिके years ago" में लिखते हैं:-"सबसे अन्तिम स्वसंपादित संस्करणकी भूमिकामें, तामिलके चेर राजा ( इमायवर्मा Imayavarmau) नामी विद्वान् मिस्टर सी० वी० थामोधरं पिल्ले का एक छाटा भाइ इल्लकाआडगल लिखते हैं कि चलामणि कमसे कम १५०० ( Illam-koadigal ) था जो जैनमतका साधु वर्षxसे कमका बना हुआ नहीं है। हो गया था। यह इल्लंकोआडिगल् 'चीलप्पथिकरं २ यशोधरकाव्यके रचयिता एक जैनी . ( Chilappathikaram ) नामक एक बड़े हैं जिनके नामका पता नहीं लगा । इस ग्रंथमें काव्यका रचयिता था।" इस ग्रंथका रचना- ३२० पद्य और चार सर्ग हैं, जिनमें पौरा- . काल ईसाकी पहली शताब्दी मालूम किया गया णिक राजा 'यशोधर' की कथा है। अच्छे । है। शेष तीन महाकाव्योंमें वलयपति और और बुरे कर्मोंका फल कैसा होता है, यह कुंडलकेसी ये दो ग्रंथ दूसरे दो जैन विद्वानोंके इस कथामें दिखलाया गया है। साथ ही, उदा- । बनाये हुए बतलाये जाते हैं । इनमेंसे कुंडलके. हरण द्वारा यह भी बतलाया गया है कि जो सीका कुछ पता ही नहीं चलता, पर दूसरेके सिर्फ कोई किसी जीवको कष्ट पहुँचाता है उसे कुछ खंड समय समय पर प्रकाशित हुए हैं। नरकयातना सहनी पड़ती है और अपनी इच्छाके विरुद्ध पशुपक्षियों तथा कीड़ोंमकोड़ोंमें ____ पाँच महाकाव्योंके सदृश पाँच छोटे काव्य जन्म लेना पड़ता है। भी हैं जिनके नाम हैं चूलामणि, यशोधरकाव्य, - हमारी रायमें, जब यह ग्रंथ गुणभद्राचार्यके उदयनकुमारकाव्य, नागकुमारकाव्य और नील उत्तरपुराणके आधार पर बनाया गया है तब इतना केसी । इन काव्योंकी रचनाका क्रम ज्ञात नही पुराना नहीं हो सकता; क्योंकि गुणभद्राचार्यका समय १ इन काव्योंमें. चूलामणि सबसे बड़ा है। विक्रमकी १० वीं शताब्दी है और उनका उक्त पुराण -इसमें काव्यसौन्दर्य और उत्तम भाव भरे पड़े शक संवत् ८२० में बनकर समाप्त हुआ था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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