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अङ्क १०-११] .. तामिल भाषामें जैनग्रंथ ।
सबसे पहले एक विराट् पुस्तकालय हो तामिल भाषामें जैवग्रंथ । जिसमें प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रोंका संग्रहविभाग, छपे हुए शास्त्रोंका और अन्यान्य हिन्दी
DR. तथा प्रांतिक भाषाओंके उत्तमोत्तम साहित्यका (अनु०-कुमार देवेंद्रप्रसादजी, आरा।). संग्रह-विभाग, ऐतिहासिक खोज और उसका प्रायः सभी पाश्चात्य विद्वानोंका यह मत है संग्रह विभाग, स्त्रीशिक्षा और बालशिक्षोपयोगी कि ईसाकी ९ वीं शताब्दीके पहले तामिल पुस्तक-विभाग, औद्योगिक और वैद्यकोपयोगी साहित्य ही नहीं था । पर वास्तव में बात यह ग्रंथसंग्रह-विभाग वगैरह रहें, तथा प्रसिद्ध प्रसिद्ध मालूम होती है कि तामिल साहित्यमें जो कुछ दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्वैमा- भी मौलिक और अत्युत्तम है वह सब नवीं सिक और त्रैमासिक आदि पत्र आते रहें। (९ वीं) शताब्दीके पहले ही लिखा गया था इसी पुस्तकालयका एक ऐसा विभाग रहे जिसके और इसके बाद जो कुछ लिखा गया है वह द्वारा समाजके प्रत्येक व्यक्ति इसके सभासद अधिकतर या तो संस्कृत ग्रंथोंका केवल अनुकरण बनकर अपने अपने स्थलों पर इस पुस्तकालयसे है और या उनका अनुवाद मात्र है । प्राचीन पुस्तकें मँगाकर नियत समय तक पढ़ सकें और तामिल काव्योंका ध्यानपूर्वक अनुशीलन करनेसे पढ़ने के बाद वापिस भेज दें। इसके लिये चाहे यह बात आसानीसे समझमें आ जाती है कि डिपाजिट और पोष्ट-खर्च सभासदोंसे ले लिया तामिल साहित्यके कुछ प्राचीनतम ग्रंथ दो जावे । दूसरे एक ऐसा विभाग रक्खा जाय कि हजार वर्षसे भी पहले रचे गये थे और उसी प्रत्येक सभाके उपदेशक जो जगह जगह घूमते समय तामिल लोगोंने अरब, ग्रीस ( यूनान ), हैं उन्हें उपयुक्त पुस्तकोंका एक एक बक्स तैयार रोम और जावा जैसी विदेशी जातियोंके साथ करके दे दिया जाय । जहाँ वे जावें वहाँके व्यापारसम्बंध स्थापित करके प्रचुर धन और लोगोंको पुस्तकें बिना किसी अपेक्षाके नियत सभ्यताको प्राप्त किया था। सांसारिक उन्नतिके . समयके नियमानुसार पढ़ने के लिये दिया करें। साथ साथ उनकी साहित्यिक उन्नतिका भी दूसरी जगह जानेपर वे पुस्तकें पढ़नेवालोंसे प्रारंभ हुआ । ईसाकी पहली शताब्दी तामिल माँगकर पुस्तकालयकी सहायताके लिये अपील साहित्यकी उन्नतिका सर्वोत्तम काल है और इसी करें। इस प्रकारसे अभी थोड़ा बहुत काम चल समय मदुरामें तामिल राजा उग्रपांड्यकी राजसकता है । कुछ दिन बाद समाजके अधिकांश सभामें कवियोंका अन्तिम सम्मेलन हुआ था। व्यक्ति स्वयं ही पुस्तकालयकी उपयोगिता जान इस कालके उन कवियोंकी संख्या जिनके ग्रंथ जायँगे और तब अपने अपने स्थलोंमें खुद हम लोगोंको उपलब्ध हैं पचाससे कम नहीं है। पुस्तकालय खोल लेंगे।
ये कविलोग भिन्न भिन्न जातियों, मतों और
तामिल देशके भिन्न भिन्न प्रांतोंके रहनेवाले थे। - आशा है कि इन बातों पर जैनसमाजका
इनमें से कुछ जैन, कुछ बौद्ध और कुछ वैदिक ध्यान आकर्षित होगा । इसके द्वारा यदि एक
मतानुयायी थे। भी नया पुस्तकालय खुल गया तो मैं अपने
नीचेकी पंक्तियोंमें, तामिल साहित्यमें निग्रंथों परिश्रमको सफल समझूगा ।
(जैनियों) द्वारा लिखे हुए ग्रंथोंकी आलोचना करने और यह दिखलानेकी चेष्टा की गई है कि
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