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अङ्क १०-११]
तामिल भाषामें जैनग्रंथ ।
जो अपनेको उत्तरपुराणके लेखक गुणभद्र किया है और उनमेंसे अनेकके साथमें अत्युत्तम आचार्यके शिष्य बतलाते हैं। यह भली भाँति टीकाएँ लगी हुई हैं। यह शोकका विषय है कि विदित है कि उत्तर पुराण ८९८ ई० में समाप्त दक्षिण भारतके जैन लोगोंने अपने सहधर्मी हुआ है। और लेखक उसमें राष्ट्रकूट-नृप अकाल- विद्वानों द्वारा रचे हुए दक्षिणी साहित्यके इन वर्ष कृष्णरायका उल्लेख करता है, जिसने ८७५ अमूल्य ग्रन्थोंको प्रकाशित करने अथवा उन और ९११ ई० के मध्यवर्ती समयमें राज्य किया ।
दूसरे पवित्रतम स्थिर किरणोंवाले ग्रन्थरत्नोंको
प्रकाशमें लानेके लिये, जो कि बहुतसे पुराने है, इस लिए यह ग्रन्थ दसवीं शताब्दीके प्रथम घरानों और मठोंके अंधेरे एकांतस्थानों तथा पादका बना हुआ होना चाहिये।
मैले-कुचैले शास्त्रभंडारोंमें दबे पड़े हैं, अब ज्योतिष।
तक बहुत ही कम ध्यान दिया है । जब कि
उनके उत्तरीय जैन-बन्ध जैनोन्नतिका विस्तार जिनेन्द्रमालै। तामिलमें फलित-ज्योतिष- करनेको बडे ही उत्साहके साथ अग्रसर हुए है-- का यह एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । इसके रचयिता
उन्होंने जैनियोंके लिए विद्यालय और छात्रालय सम्भवतः जिनेन्द्रव्याकरणके कर्ता (पूज्य
खोल रक्खे हैं, संस्कृत प्राकृतके जैनपाद ) हैं।
ग्रन्थोंको प्रकाशित कराया है, जैन-ग्रन्थोंके अन्य ग्रन्थ।
पुस्तकालय खोल रक्खे हैं, जिनमें संस्कृत, १ मेरुमन्दरपुराणम् । वामनाचार्यरचित । बंगला, हिन्दी, मराठी, गुजराती, तामिल आदि इस ग्रन्यमें १३ सर्ग और १४०६ पद्य हैं। इसमें भाषाओंके ग्रन्थ हैं। वे अँगरेजी, हिन्दी, मराठी 'मेरु' और 'मन्दर ' नामके दो भाईयोंकी और गुजरातीमें जैनपत्र सम्पादन करते हैंकथा और जैन-सिद्धान्तोंकी व्याख्या है। और भी अनेक ऐसे कार्य करते हैं जोकि अपने
२थीरुनुवान्धान्धि । यह अविरोध ना. उन सहधर्मीभाईयोंकी उन्नति तथा उत्थानमें सहाथका बनाया हुआ है। (देखो अँ जैनगजट यक हों जो कि सारे उत्तरभारतमें फैले हुए हैं। भाग ९, २, पृ० ११)
___ आशा है कि दक्षिणके जैन लोग भी अब शीघ्र ३ थीरुकलम्बकम् । उथीसे देवविरचित ।
जागेंगे और स्वसमाजके उत्थानके लिये अपनी इस ग्रन्थमें जैन-सिद्धान्तों (दर्शनशास्त्र ) की
. जिम्मेदारीको समझते हुए अपने उत्तरीय भाईअच्छी व्याख्या है।
योंका अनुकरण करेंगे।* इन ग्रन्थोंके अतिरिक्त भगवान अर्हतके गुणगानको लिए हुए सैकड़ों स्तोत्र हैं। ___ जैन-लेखकोंद्वारा लिखे हुए तामिलके इतने ही * यह लेख एक तामिल जैनद्वारा लिखे हुए ग्रन्थ अभीतक हमको मालूम हुए हैं। इनमेंसे 'जैनी और तामिल साहित्य' नामके अंगरेजी लेखका, अनेक ग्रन्थ मद्रास-विश्वविद्यालयकी साहित्य- जो कि अंगरेजी जैनगजटके कई अंकोंमें प्रकाशित हुआ परीक्षाओंमें नियत हो चुके हैं। बहुत ग्रन्थोंको है, भावानुवाद है। इसके लिये हम मूल लेखक तथा कुछ प्रतिभाशाली अजैन विद्वानोंने प्रकाशित संपादक जैनगजटके बहुत आभारी हैं ।-अनुवादक ।
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