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अङ्क १०-११]
तामिल भाषामें जैनग्रंथ।
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सनाया। राजाको सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ “जो चारसौ कहावतें इस ग्रंथमें प्रयुक्त और उसने साधुओंकी ऐसी उत्तम यादगार हुई हैं वे मदुराकी अन्तिम विद्वज्जन सभाके (स्मृतिचिह्न ) को फेंक देनेकी अपनी सहसा समयमें प्रचलित थीं । वे ग्रंथकर्ताकी प्रस्तावनामें आज्ञापर बहुत अफसोस किया, साथ ही सा- 'प्राचीन कहावतें' बतलाई गई हैं । अतः इस धुओंके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिये ग्रंथसे तामिल लोगोंकी प्राचीन सभ्यताका बहुउसने उन पद्योंको इकट्ठा करके नीतिकी एक मूल्य उल्लेख मिलता है । प्रायः हर एक पद्यकी पुस्तक बनाई और उसका नाम 'नालडियार' तीसरी पंक्तिमें ग्रंथकार. किसी राजा ( शायद रक्खा; क्योंकि उसके प्रत्येक पद्यमें ' नालडी' उस समयके पांड्य राजा ) को या किसी स्त्रीको अर्थात् चार पंक्तियाँ (चरण ) थीं। कुछ का- सम्बोधन करके लिखता है । पहली दो पंक्तिलके पश्चात् पद्मनर नामके एक तामिल विद्वा- . योंमें आम तौर पर वह विषय रक्खा गया है नने इस पर एक टीका लिखी और इसके पद्यों. जिसे ग्रंथकार सुझाना चाहता है और अन्तिम को ४० परिच्छेदोंमें विभाजित कर दिया । ... पंक्ति कहावतकी है । बहुतसे पद्योंमें विषय और
३पालमोलिननरु Palmolinanuru(चा- कहावतके बीचमें जो सादृश्य है वह प्रशंसनीय रसौ कहावतें )। यह एक पुस्तक है जिसमें ४०० है और कहीं कहीं पर बड़ा ही चमत्कारिक है, पद्य हैं और जिसे एक जैन राजाने बनाया है, यद्यपि कोई कोई सादृश्य कुछ कहावतोंके प्रचलित जो कि पांड्यदेशके - 'मुनरुराइ' भागपर न रहनेके कारण अब समझमें नहीं आता है । राज्य करता था। इस पर एक जैनकी लिखी कुछ पयोंमें कहावतें उपमाओंका काम देती हैं; हुई प्राचीन टीका है । मिस्टर टी० चेल्वकेस- दूसरे पयोंमें किसी कहावतकी यथार्थताका उवराय मुदालियर द्वारा संपादित 'पालमोलि- दाहरण किसी प्राचीन तथा प्रसिद्ध उल्लेखद्वारा ननरु' की भूमिकासे कुछ अवतरण यहाँ दिये दिया गया है।" जाते हैं जिनके पढ़नेसे पुस्तकके महत्त्वका “ यद्यपि साहित्यसम्बन्धी उत्तम प्रकारके - अच्छा परिचय मिल सकता है:-
व्यवहारोंका इस पुस्तकमें, जहाँ तहाँ, प्रयोग " यह पुस्तक 'पालमोलिननरु ' इस वज- पाया जाता है, तो भी इसकी शब्दरचना हसे कही जाती है कि इसके प्रत्येक पद्यके 'नालडी' और 'कुरल' जैसी प्रासादअन्तमें एक पालमोलि ( कहावत ) लगी हुई गुणविशिष्ट नहीं है । लेखनशैली इसकी है । ये कहावतें छन्दकी आवश्यकतानुसार जहाँ तीक्ष्ण है और वह अर्थकी सुस्पष्टता, और त्यातहाँ बदल दी गई हैं।"
ख्यानकी महत्त्वपूर्णताको लिये हुए है। ग्रंथकार___“ यद्यपि कुछ कहावतें समयके फेरसे इस की विद्वत्ता उसकी केवित्तशक्तिसे बढ़ी हुई है। समय प्रचलित नहीं हैं तो भी उनमेंसे बहुतसी इस ग्रंथमें जो कुछ मुग्धकारी गुण है वह उन , आजतक व्यवहारमें आती हैं । कहावतें. ग्रंथ- कहावतों द्वारा उत्पन्न है जो प्रत्येक पद्यमें वर्णित - मालाकी दूसरी बहुतसी पुस्तकोंमें भी पाई जाती बातों पर पाठकोंका ध्यान खींच लेती हैं।" हैं, पर प्राचीन अथवा मध्यमकालीन उच्च साहि- “ग्रंथकार जैनमतावलम्बी होने पर भी त्यके किसी भी दूसरे ग्रंथमें कहावतोंकी ऐसी कट्टर जैनी नहीं है । किसी किसी पद्यमें धार्मिक भरमार नहीं है। यही इस पुस्तककी सबसे तथ्यका वर्णन वह बिलकुल पक्षपातरहित हो अधिक विलक्षणता है।"
कर करता नजर आता है ।"
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