Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 66
________________ जैनीहतैषी / Reg. 719. B. जैनसाहित्य-संशोधक डाँकखानका नया नियम / अपूर्व त्रैमासिक पत्र / अब डांकखानेके नये नियमके अनुसार और इतिहास और जैनसाहित्यके जिज्ञासुओंके अनरजिस्टर्ड वी० पी० नहीं जा सकेंगे, सब का लिए अपूर्व साधन / यह रैमासिक पत्र सरस्वतीके / * पी० रजिस्टर्ड ही लिये जावेंगे / अर्थात् पुस्तकक साइजके सवासौ पृष्ठों पर विकलता है। अनेक ऐतिहासिक चित्रोंसे भी सुशोभित रहता है / अंगरेजी. प्रत्येक पाकेट पर अभी जो पोस्टेज और म. हिन्दी और गुजराती इन तीनों भाषाओके तेच आ० चार्ज लगता था उसके सिवाय दो आने इसमें रहते हैं / प्राचीन आचार्यों का समय-नि. , और भी अधिक लगा करेंगे / पुस्तक चाहे चार अपर्व तथा दुष्प्राप्य जैनग्रन्थों, शिलालेखों तथा त - आनेकीही हो तो भी उसपर म० आ. और पत्रोंका परिचय, विदेशी विद्वानोंकी जैनसाटिन और इतिहाससम्बन्धी आलोचनायें. जैनतत्त्वज्ञा . पोस्टेजके सिताय ये दो आने भी अवश्य लगेंगे। सम्बन्धी गंभीर विचार आदि अनेक विषय इसन इस लिए ग्राहक महाशयोंको चाहिए कि वे रहते हैं और वे बड़ी निष्पक्षतासे लिखे जात है। पस्तकोंका आर्डर भेजते समय इस खर्चका विचार जैन और जैनेतर सभी विद्वान् इसमें लिखते हैं। प्रत्येक दिगम्बर और श्वेताम्बर दुगका ग्राहे अवश्य कर लेवें / एक रुपयसे कमका वी० पी० चाहिए / दूसरा अंक शंघ्री नेकलने वाला / हम अब नहीं भेजते / कमका आर्डर हो तो वार्षिक मूल्य 5) पांच रुपया और एक अंकका टिकट आदि भेज देने चाहिए। पोस्टेज जुदा / व्यवस्थापकजैनसाहित्य-संशोधक, जैनहितैषीका मूल्य अन् म; आ० से ही C/o भारत जैनविद्यालय, फर्गुसनकालेजरोड, पुन: भेजने में लाभ हैं। वी० पी० मंगानेसे नाहक दो __ आने अधिक पड़ेंगे। युक्त्यनुशासन सटीक / माणिकचन्द्र जैनग्रन्थमालाका 15 वाँ ग्रन्थ - -मैनेजर / कर तैयार हो गया। इसके मूलका भगवान् समानभद्र और संस्कृतटीकाके कर्ता आचार्य विद्यानन्द है। यह भी देवागमकी भाँति स्तुत्यात्मक है और पुछि - बम्बईका माल / योंका भाण्डार है / अभी तक यह ग्रन्थ दुई / प्रत्येक भण्डारमें इसकी एक एक प्रति अवश्य रहब सब तरह / माल--कृपः, किराना, चाहिए / मूल्य ) स्टेशनरी, पीतल ताँबा, दाइयाँ, तेल, साबुन नयचक संग्रह। आदि-हमसे मँगाइए / माल दश जगह जाँच यह उक्त ग्रन्धमालाका 16 बौद / देवसेनसूरिकृत प्राकृत नयचक्र ( संस्कृतछायासहित / करके बहुत सावधानी और ईमानदारीके साथ और आलापपद्धति तथा माइल्ल धवलकृत द्रव्यस्वभाव भेजा जाता है / चौथाई रुपयेके लगभग पेशगी प्रकाश (छायासहित) ये तीन ग्रन्थ छपे हैं। . भूमिका पढ़ने योग्य है / लगभग एक महीने में भेजना चाहिये / एकबार व्यवहार करके देखिए / सैयार होगा / मू०॥ नन्हेलाल हेमचन्द जैन, कमीशन एजेण्ट, मैनेजर, जैनग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, बम्बई। चन्दाबाड़ी, पो. गिरगाँव, बम्बई / Printed by Chintaman Sakharam Deols. at the Bombay Vaibhay Press, Servants of India Society's Building andhurst Road, Girgaon, Bombay Published by Nathuram Premi, Proprietor, Jain-Granth-Ratnakar Karyalaya, Hir az, Bombay. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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