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अङ्क १०-११]
विविध प्रसङ्ग ।
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होता-परंतु उस समय वैसा होना तो दूर रहा, या कि नहीं, और यदि निकल जाय तो पत्रको जैनहितैषी सभाकी दृष्टिमें एक जैनपत्र था क्या तावान (जर्माना ) देना पडेगा यह सब
इसी लिये प्रस्तावानसार प्रस्तावकी एक नकल कछ मालम नहीं हआ। तीसरी शतके मताबिक उसके संपादकके पास भी भेजी गई थी। अस्तु। पत्र में विधवाविवाहके प्रतिकल लेख निकाले दूसरा भी कोई ऐसा नवीन कारण मालूम नहीं जावेंगे । अनुकूल लेखोंको, चाहे वे महात्माहोता जिसका अस्तित्व उस समय न हो । इस गाँधी जैसे विद्वानोंके विचार ही क्यों न हों, लिये यही कहना होगा कि सभाका दृष्टिविकार सूचना रूपसे भी, कोई स्थान नहीं मिलेगा। उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। उसे जो वस्तु थोड़े ही इसतरह मार्तडके पाठकोंको दूसरी तरहके विचादिन पहले अपने असली रंगरूपमें दिखलाई देती रॉकी गड़बड़में पड़ने और सोचने समझनेका थी वही वस्तु, उसी रंगरूपमें होते हुए भी, कष्ट उठानेसे सुरक्षित रक्खा जायगा । चौथी अब विकृत दशामें नजर आती है-सफेद चीज शर्तके अनुसार शास्त्रोंके श्लोक तथा गाथाओंको पीली, काली अथवा हरी नजर आने लगी है- अब इस पत्रमें छपनेका सौभाग्य प्राप्त न होगा। इसीका नाम दृष्टिविकार है।
हाँ, उनका कुछ अंश जरूर छप सकेगा, चाहे ३-विक्रीत देह। वह किसी विवादके लिये पर्याप्त हो या न हो। सहयोगी · जैनमार्तड' ने अपना शरीर मालूम नहीं, इस शर्तमें लालाजीका क्या रहस्य २५० ) रुपयेमें ला० देवीसहायजी जैन है और उसके अनुसार पत्रमें शास्त्रोंका गद्य रईस व बेंकर फीरोजपुर छावनीके हाथ कुछ भाग भी उद्धृत हो सकेगा या कि नहीं। शर्तों पर बेच डाला है । अब उसके संपादक अपने शरीरके इस तरह बिक जानेपर जैन महाशय इच्छा रहने पर भी उसमें अपने मार्तडने बहुत हर्ष मनाया है और अपने खरीदास्वतंत्र विचार प्रकट नहीं कर सकेंगे और न रको ‘परम धर्मात्मा' की पदवी प्रदान की है ! शर्तों के विरुद्ध अपनी किसी इच्छाको चरितार्थ इससे
इससे पाठक पत्रके हृदयकी गहराईको बहुत :कर सकेंगे। अतः जैनमार्तडको अबसे 'विक्रीत
कुछ माप सकते हैं। देह' समझना चाहिये। पहली शर्तके अनसार
४-शुभ चिह्न। उसमें सिर्फ वहीं लेख निकला करेंगे जो दिगम्बर शुद्धाम्नायके अनुसार होंगे, दूसरे लेखोंको सहयोगी जैनमित्रसे यह मालूम करके हमें स्थान नहीं मिलेगा । मालूम नहीं 'दि० शुद्धा- बहुत प्रसन्नता हुई कि पापड जि. अमरावतीकी नाय ' के स्वरूपकी लाला साहबसे कोई राज- एक स्त्री श्रीमती राधाबाईजीने अमरावतीमें एक ष्टरी कराई गई या कि नहीं। दूसरी शर्तके अनु- 'जैन बोर्डिंग हाउस' खोलनेके लिये २० हजार सार उन मिथ्यावादियोंका प्रत्येक अंकमें खंडन रुपये मकानके वास्ते और ९ हजार रुपये निकला करेगा जो इस (शुद्धाम्नायी ) धर्मपर वार्षिक आमदनीके पाँच खेत चिरस्थायी खर्चके कलंक लगा रहे हैं । परंतु यदि किसी अंकमें लिये दान किये हैं। हमारी रायमें जैनियोंके खंडनके योग्य कोई बात न हो अथवा कोई लेखक लिये यह बड़ा ही शुभचिह्न है जो उनके स्त्री
विषयक लेख लिख कर न भेजे और संपादक समाजकी परिणति ऐसे समयोपयोगी कार्योंकी महाशय स्वयं कोई वैसा लेख लिखनके लिये तरफ होने लगी है। हम श्रीमतीकी इस उदारता, तय्यार न हों तो अंक विना खंडनके निकलेगा दूरदृष्टता और परोपकार बुद्धिकी हृदयसे प्रशंसा
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