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जैनहितैषी -
३ उदयनकुमारकाव्यमें . वत्स देशके राजा उदयनकी कथा है । इसके रचियता भी एक अज्ञातनामा जैन हैं । यह काव्य छह समें है और अब प्रकाशित किया जा रहा है।
४ नागकुमार काव्य अभी हस्तलिपिके रूपमें है, और एक छोटा किन्तु रोचक काव्य है ।
५ नीलकेसीके रचयिताका नाम ज्ञात नहीं, पर यह भी एक जैन थे । यह ग्रंथ दस सर्गों में है और इसमें जैनधर्मके तथ्यों का वर्णन है । इस पर 'श्रीसमयदिवाकर वामन मुनिकी एक अच्छी टीका है । नीतिकाव्य |
१ थिरुक्कुरल् ( Thirukkural) | यह वास्तव में एक ऊँचे दर्जेका तामिलग्रंथ और एक जैनाचार्यकी अमरकृति है, जिन्हें उनकी अधिक प्रसिद्धिके कारण हिन्दू लोग भी अपनाने की चेष्टा कर सकते हैं, पर इस विषयके अकाट्य प्रमाण उपलब्ध हैं कि वे जैनी थे । इस पुस्त - कमें धर्म, धन और प्रेमका वर्णन १३३ परिच्छेदोंमें किया गया है और प्रत्येक परिच्छेद में १० दोहे ( Couplets ) हैं । यह पुस्तक • अपने ढंग की ऐसी सार्वभौमिक है कि विभिन्नमतोंके अच्छे अच्छे लेखक प्रमाणके तौरपर इसमें से अवतरण दिया करते हैं और इसका अनुवाद योरुपकी चारसे अधिक भाषाओं में हो गया है । यह पुस्तक ईसाकी दूसरी शताब्दी के बादकी बनी हुई मालूम नहीं होती । ( जैनहितैषीमें इसका अनुवाद प्रकाशित हो रहा है । )
२ नालडियार ( Naladiyar ) । यह एक काव्यसंग्रह है, जिसके ४० परिच्छेदोंमें ४०० चतुष्पदी ( Quartrasin ) हैं । इसमें धन, सांसारिक यश, शारीरिक सुन्दरता और यौवनकी क्षणभंगुरता तथा धर्म, सत्य और साधुताके गुणोंकी महत्ता और स्थिरशीलताका वर्णन है ।
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[ भाग १४
इस ग्रंथके रचे जानेकी कथा इस प्रकार है:दो हजार वर्ष हुए जब कि उत्तर भारत में घोर दुर्भिक्षसे पीड़ित होकर आठहजार जैनमुनियोंने दक्षिण भारतको प्रस्थान किया और वे पांड्य देशमें पहुँचे, जहाँके पांड्यराजा उम्रपेरुवली ( Ugraperuvali ) ने उनका हृदयसे स्वागत किया । विद्वानोंकी संगतिसे राजाको बड़ा प्रेम था, इस लिये उसने मुनियोंपर बड़ा अनुग्रह रक्खा और उनका अच्छा आदर सत्कार किया । कुछ महीनों के बाद मुनियोंको मालूम हुआ कि अब उनके देश उत्तरभारत में अकाल नहीं है और वहाँकी दशा फिरसे अच्छी हो गई है । अतः उन लोगोंकी इच्छा स्वदेश लौटनेकी हुई और उन्होंने उग्रपेरुक्लीसे जानेकी इजाजत माँगी । राजाको उनका संग छूट जाना दुःखदायक जान पड़ता था और वह नहीं चा हता था कि वे लोग उसके राज्यसे चले जायँ, इसलिये उसने अपने ही देशमें अपनी रक्षातले रहनेके लिये उनसे विनय किया । पर मुनियोंको यह बात पसंद नहीं थी । राजासे दूसरी बार अनुमति माँगनेसे डरकर मुनियोंने एकदिन प्रातः काल अपने अपने आसन के नीचे तालपत्रके टुकड़ेपर एक एक श्लोक (पद्य) लिखकर रखदिया और वे वहाँसे चल दिये । जब राजाने सुना कि मुनिलोग चले गये तो वह उस विशाल भवनमें आया जहाँ वे लोग बैठते थे और आसन हटानेपर उसे तालपत्रके टुकड़े मिले । राजाने क्रोधवश अपने आदमियोंसे कहा कि इन टुकड़ों को 'वैगाइ ' नदीमें फेंक दो । नौकरोंने राजाकी आज्ञाके अनुसार काम किया । परंतु आश्चर्य की बात यह हुई कि इनमें से लगभग चार सौ टुकड़े धाराके विरुद्ध तैरते हुए किनारेपर जा लगे, जहाँपर लोगोंने आश्चर्यके साथ उनको उठा लिया और राजाके पास जाकर इस आश्चर्यजनक घटनाको कह
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