Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ ३३४ " ग्रंथमाला के अन्य ग्रंथोंकी भाँति यह ग्रंथ भी पुरुषार्थका वर्णन करनेवाला है । इसमें जीवनके अनुभवोंका संग्रह है, जिनमें से कोई कोई ऐसे बहुमूल्य और व्यावहारिक संकेतों तथा सूचनाओं को लिये हुए हैं जो कि नालडी और ' कुरल' मै भी उपलब्ध नहीं हैं । " ( " जैनहितैषी - ४ थिनैमलै (Thinaimalai) । इसके लेखक ' कनिमेधावियर ' हैं । इसमें १५० पय हैं और उनमें पाँच अंतरंग पदार्थोंका वर्णन है । ९८ यह करियासन्का बनाया हुआ या ग्रंथ है। इसके प्रत्येक पद्य में पाँच चीजों का वर्णन है और इसीसे 'पंच' शब्द साथमें जोड़ा गया है । ५ सिरुपंचमूलं (Siru-Panchamulam)। 'ब्दीका बना हुआ है । ६ येलाडी ( Yeladi ) । कनिमेधावियर - का लिखा हुआ यह ८० पयोंका ग्रंथ है और इसके प्रत्येक पद्यमें ६ शिक्षाएँ हैं । ये छहों पुस्तकें मदुराकी अन्तिम विद्वज्जनसभासे स्वीकृत होकर प्रसिद्ध १८ किलकनक्कुओं ( खंडकाव्यों) में परिगणित की गई थीं । ७ अरनेरिञ्चरं ( Aranorichcharam ) । यह पुस्तक मुनै पडियर ( Munaippadiar ) बनाई हुई है और इसमें जैनधर्म तथा नीतिविषयक २२२ पय हैं । व्याकरण | १ अहप्पोरुल्-इलक्कनम् ( Ahapporul - ilakkanam) । ' नक्कविराजनम्बियर ' विरचित यह तामिल व्याकरण पर लिखे हुए ' तोलहप्पियम् ' नामक एक अतिशय प्राचनि ग्रंथके तृतीय भागका सारांश है । २ यप्परुंगलम् | कनकसागर मुनिरचित यह अलंकार और छंदशास्त्र विषयका एक ग्रन्थ है। इसमें तीन परिच्छेदों में ९५ प हैं । Jain Education International [ भाग १४ ३ यप्परुंगलकारिकै । अमृतसागर मुनिकी बनाई हुई यह उपर्युक्त ग्रन्थकी टीका है! ४ वीरचोलियम । यह भी एक व्याकरण ग्रन्थ है, जो ' बुद्धमित्र ' नामके, सम्भवत: एक जैन व्यक्ति द्वारा रचा गया और वीरचोल राजा के नामसे अंकित किया गया है । इसमें १८९ पद्य हैं, और उन पर एक टीका है। ग्रंथ में अक्षर, शब्द, वाक्यरचना, छंद और अलंकारका वर्णन है और वह प्रायः ईसाकी १९ वीं शता ' पविनन्दि ५ नन्नुल । यह प्रसिद्ध मुनिकी रचना है, जिसने कुलोत्तुंग तृतीयके अधीनस्थ राजा चोलवंशीय अमराभरण सीप गंगकी प्रार्थना पर इस ग्रन्थको प्रायः १२ वीं शताब्दी के अन्तमें लिखा था; क्यों कि यह अच्छी तरह ज्ञात है कि कुलोत्तुंग तृतीय सन ११७८ ई० में राज्यसिंहासन पर बैठा था । इस ग्रन्थमें केवल अक्षरों और शब्दोंका वर्णन है, और आज कल यह सबसे अधिक प्रामाणिक ग्रन्थके तौर पर माना जाता है । प्रत्येक क्यूलेशन, एफ० ए० और बी० ए० की परीक्षावर्ष मद्रास विश्वविद्यालय के द्वारा, उसकी मैट्रीउपयोगी पाठ्य पुस्तकके तौर पर नियत की ओंमें, यह पुस्तक व्याकरणविषयकी एक मात्र जाती है । ६ नेमिनादम । गुणवीर पण्डितरचित । इस ग्रंथ में अक्षरों और शब्दोंका वर्णन ९६ पयोंमें दिया है और उन पर एक टीका भी है । ७ अञ्चनन्दिम । गुणवीर पण्डितरचित यह छंदः शास्त्रविषयक एक काव्य है । कोश | चूडामणि निघण्टु ! इसमें -१२ अध्याय हैं और इसके रचयिताका नाम मण्डलपुरुष है, : For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66