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जैनहितैषी-
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[भाग १४
आज्ञा लेकर श्रीमहावीरसे मुनि दीक्षा ग्रहण कर तीव्रतर वेदना अनुभवी ता समै', ली । परन्तु वे मुनिव्रतकी परीषहसे एक दिनमें सात दिन रात तक तें करारी ॥" ही घबड़ा उठे और पुनः गृहस्थ जीवनमें प्रवेश महावीर स्वामीने मेघमुनिको धर्मोपदेश देकर करनेको उद्यत हो गये । इसी इरादेसे महावीर मुनिव्रतमें पुनः दृढ किया। स्वामीके पास पहुँचे । स्वामीने उनके मनकी सुन बैन वीर प्रभुके मुनि मेघ चैन पायो। बात जान ली और उन्हें उनके पूर्व भवोंका जिनराजके चरणमें एकाग्र मन लगायो । वृत्तान्त सुनाया । महावीरस्वामी बोले
पुनि मेघने दुबारा चारित्र लेन चायो। " सुनहु मुनि मेघ तव पुवभव वारता,
उठान सूत्र फिरसे श्री वीरने सुनायो । देहु उपयोग विनम विसारी ।
दीक्षा प्रदान करके मुनि-मार्ग भी बतायो । पेख इहे भव थकी तीसरे भव विषं,
आज्ञानुसार मेघे मुनि-मार्गको निभायो॥" हतो गजराज तूं बन बिहारी ॥
तदुपरान्त मेघमुनिने सिद्धांत पढ़े और घोर . एकदा ग्रीष्मऋतु माँहि तिहँ बन विषे,
तप किया। लगी दावाग्नि अटवी अजारी। .
२ श्रीप्रदेशीचरित्र । इस ग्रंथकी रचना विस्तरी धूम दिशि विदिश वायू बलें,
संवत् १९५८ में हुई थी। यह राजप्रश्नीय भये भयभीत सब विपिनचारी ॥
सूत्रके आधार पर लिखा गया है । इसका अपर करत आक्रद निज जीव जीवा विवा,
नाम 'नास्तिकमतनिराकरण' है । इसमें एक इत उतें भ्रमण लागे तिवार भूमि भवकंत आतप पड़े आकरी,
कथाके बहाने नास्तिकमतका खण्डन किया लगें लू लपट तन दहनहारी in
गया है । इसमें युक्तियों सहित बतलाया गया दैववश एक सर नजर तुझ आवियो,
है कि जीव और काया पृथक् पृथक् पदार्थ हैं। ता विर्षे पंक बहु, अल्प वारी ।
अन्तमें क्षमा और तपका महात्म्य दिखाया गया . सर विष पैठियो नीर पीवा भनी ।
है । यह ग्रंथ छोटासा है; कुल ८१ छंदोंमें है । -दंड सम सुंड जलहित पसारी ॥
प्रकाशित हो चुका है। रचना बहुत साधारण नीर ना कर चढ्यौ, कीच माँही गढ्यौ, है । उदाहरण:लौट हू सक्यौ ना तूं पिछारी ।
“तप दावानल कर्मः, क्षणमें डारे जार । नीर अरु तार दोऊनकी ना रह्यो,
लब्धादिक बहु ऊपजै, पावे केवल सार ॥ कर्मगति अजब ना टरे टारी ॥
३ भावनाविलास-इसमें द्वादश भावनाएतले तिहाँ तव शत्रु गज आवियों,
ओंका स्वरूप वर्णन किया गया है । यह ग्रंथ पूर्वलौ वैर चित माँ चितारी। विवश लख तोय कर कोप पायें हन्यौ.
अभी प्रकाशित नहीं हुआ। होय प्रतिकूल रद-सूल मारी ॥
... ४ चौथे ग्रंथमें मुनिजीके फुटकर छंदोंका मारता मारता और हू कीचमें, .
संग्रह है। प्रायः सभी छंद अप्रकाशित हैं । दो घोंचियो अस्थि नस तोरि डारी।
चार छंद प्रकाशित हो चुके हैं। उदाहरण:१ पूर्व । २ इस । ३ से। ४ जिलाने के लिए
“समकत पान सुधारक चूना चारित लाय । अर्थात् रक्षा करनेके लिए। ५ पानी । ६ पानी पीनेके
करणीका कत्था करो बीड़ी लेय बनाय ॥ लिए। ७ इतनेहीमें। ८ भागमा ।
१ समय।
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