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जैनहितैषी -
[ भाग १४
इस वाक्यमें जिनशासनों का उल्लेख है ग्रंथ में
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उनका क्रमशः भाट्ट प्राभाकर' तक कथन
" इह हि पुरुषाद्वैत-शब्दाद्वैत-विज्ञानाद्वैत-चित्राद्वैत- है, जिसे उक्त ग्रंथमाला में श्रीनागसेन आचाशासनानि चार्वाक-बौद्ध-सेश्वर-निरीश्वर-सांख्यनैय्या र्यका बनाया हुआ प्रकट किया है। वह श्रीनागयिक-वैशेषिक-भाट्ट-प्राभाकरशासनानि तत्त्वोपप्लुतशास सेन आचार्यका बनाया हुआ है या कि नहीं, नमेकान्तशासनं चेति अनेकशासनानि प्रवर्तन्ते । " इस विषयका विचार हमने एक अलग नोटद्वारा उपस्थित किया है । परंतु यहाँ हम सिर्फ इतना बतलाना चाहते हैं कि उक्त तत्त्वानुशासन से भिन्न एक और तत्त्वानुशासनका भी पता चलता है । दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रंथ ' नामकी सूचीमें समन्तभद्र के ग्रंथों में ' तत्त्वानुशासन' का भी एक नाम है ? श्वेताम्बर कान्फरेंसद्वारा प्रकाशित 'जैनग्रन्थावली' में भी तत्त्वानुशासनको समन्तभद्रका बनाया हुआ लिखा है और साथ ही यह भी प्रकट किया है कि उसका उल्लेख सूरतके उन सेठ भगवानदास कल्याणदासजीकी प्राइवेट रिपोर्ट में है जो कि पिटर्सन साहबकी नौकरी में थे । और भी कुछ विद्वानोंने समंतभद्रका परिचय देते हुए उनके ग्रंथोंमें ' तत्त्वानुशासन' का भी नाम प्रगट किया है । परन्तु अनेक प्रसिद्ध भंडारों की सूचियाँ देखने पर भी अभीतक हमको यह मालूम नहीं हुआ कि स्वामी समन्तभद्र बनाया हुआ तत्त्वानुशासन ग्रंथ किस जगह मौजूद है और यह भी अभीतक पूरी तौर से निश्चय नहीं हुआ कि उक्त आचार्य महोदय वास्तवमें तत्त्वानुशासन नामका कोई ग्रंथ बनाया है या कि नहीं । परन्तु खोज करनेसे इतना पता जरूर चला है कि तत्त्वानुशासन नामका कोई दूसरा ग्रंथ भी बना है, जिसका एक पद्य नियमसारकी टीका में पद्मप्रभमलधारिदेवने 'तथाचोक्तं तत्त्वानुशासने इस वाक्यके साथ, उद्धृत किया है । वह पय इस प्रकार है :
किया गया है, और ऐसा ऊपर उद्धृत किये अन्तिम भागसे भी प्रकट है। और इसलिये तत्त्वोप्लुतादि शासनों की परीक्षाका भाग उक्त प्रतिमें नहीं है । संभव है कि भाट्ट प्राभाकर शासनोंकी परीक्षाका भी कुछ भाग रह गया हो । अतः दूसरे शास्त्रभंडारों में इस ग्रंथरत्नकी पूरी प्रतिकी खोज होने की बहुत बड़ी जरूरत है, जिससे इस पूरे ग्रंथका उद्धार हो सके । यदि दूसरे भंडारोंमें भी इस ग्रंथका इतना ही भाग उपलब्ध हो तो यह समझना होगा कि विद्यानंद स्वामी इसे पूरा नहीं कर सके हैं और यह उनका अन्तिम ग्रंथ है । परन्तु भवनमें इस ग्रंथकी प्रति देवनागरी लिपिमें है और सूची में उसकी लिपिका संवत् १९६० दिया है । इससे मालूम होता है कि यह प्रति किसी दूसरी प्रति - परसे अभी कुछ ही वर्ष हुए कराई गई है । बहुत संभव है कि मीलान के लिये वह मूल्य प्रति भी अभी मिल सके । अतः इसके लिये जरूर प्रयत्न होना चाहिये । इस ग्रंथ में बहुत जगह 'उक्तं च भट्टाकलंकदेवैः ’ ' उक्तं च स्वाभिसमन्तभद्रा - चार्यैः' ऐसे वाक्य पाये जाते हैं । विद्यानंद स्वामीका ग्रन्थ होनेसे यह निःसन्देह एक महत्त्व का ग्रंथ है और इसका शीघ्र उद्धार होना चाहिये ।
२२ तत्त्वानुशासन (द्वितीय) । एक ' तत्त्वानुशासन' नामका ग्रंथ 'माणिकचंद - दिगम्बर जैनग्रन्थमाला' में प्रकाशित हो चुका
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