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अङ्क १०-११] हमारी शिक्षा संस्थाएँ।
३२३ होनेके कारण हजारों जैनी बंजी और मजदूरी और प्रान्तोंकी अपेक्षा बुंदेलखंड और मध्य-- सरीखे घोर परिश्रमसाध्य पेशोंको कर रहे हैं; परंतु प्रांत शिक्षामें बहुत पीछे हैं । यहाँ अक्षर और तो भी इनका “ नौ खाये तेरहकी भूख" से अंक ज्ञानवाले जैनी भाई सैकड़े पीछे २०-२५ नाता नहीं टूटता । ये समाजके तीन चौथाई
MS भले ही मिल जावें, परंतु जिन्हें सभ्य समाज
शिक्षित कह सके ऐसे व्यक्ति सैकड़ेमें एक दो ही. भागको दबाये बैठे हैं। इनकी उन्नतिसे ही समाज
मिलेंगे। इन्हीं दोनों प्रांतोंमें परवार, गोलापूरव, की उन्नति है। धनिक भागसे इनका घनिष्ठ गोलालारे भाइयोंका बहुतायतसे निवास है। सम्बंध है, इस कारण डर है कि कहीं द्रव्योपा
इससे परवार महासभा अथवा मध्यप्रांत बुंदेलजनके साधनों और शक्तिके अभावमें ये गरीब खंड प्रांतिक सभाको अधिक नहीं तो, एक ऐसे शाखामग बने रहकर अपने धनी सम्बन्धियोंके विद्यालयकी स्थापना अवश्य करनी चाहिये जिससे सम्पत्ति-बागको चट न कर जावें । कहावत है पाठशालाओं और विद्यालयोंमें काम करनेके . कि “ सूखा ईंधन गीलेको लेकर जल जाता लिये अध्यापक तैयार होवें, तथा व्यापारी और है।" धनिक कहाँ तक हाथ सिकोड़ेंगे ? देने व्यापारियोंके यहाँ काम करनेवाले मुनीम मु. की इच्छा तथा सामर्थ्य न होते भी दया और ख्तार भी तैयार होवें । यद्यपि ऐसे विद्यालयको लोकलाजके दबावसे दबने पर कुछ न कुछ स्थापित करना और उससे इच्छित फल पानेके देना ही पड़ेगा। इससे श्रीमानोंको चाहिये कि लिये उसे भली भाँति चलाना कष्टसाध्य कार्य है, शीघ्र समयोपयोगी शिक्षासंस्थाएँ स्थापित करें तथापि वह असाध्य नहीं है । हमारे धनिक बंधुऔर विद्वानोंको चाहिये कि शास्त्री और ग्रेजु- ओंके दिलमें यदि आ जाय तो वे आर्थिक सहायता' एटोंके बनानेकी धुनको कम करके इन गरीबों- मजदी में इसे स्थापित कर सकते हैं और को व्यापारिक (औद्योगिक) शिक्षा देनेका विद्वान् भाई अपने मित्र अजैन विद्वानोंकी सहाशीघ प्रबंध करें।
यता लेकर उसे सहजमें चला सकते हैं । अब संस्थाओंसे सम्यक् फल प्राप्त करनेके लिये समय बदल गया है। लोग धार्मिक उत्सवोंमें उनकी व्यवस्था और पाठ्यप्रणालीको सम्यक् भिन्नधर्मावलम्बियोंको, मिथ्यात्वी नास्तिक बनाना आवश्यक है। व्यवस्थाके लिये शिक्षा- आदि कहकर, बुलाने और सम्मति लेनेके पद्धतिके ज्ञाता, चतुर, उद्योगी और समया. विरोधी भाइयोंको तुच्छ दृष्टि से देखने लगे हैं।
- फिर शिक्षा सरीखे व्यावहारिक और आवश्यकीय... नुकूल व्यवहार करनेवाले अध्यापकोंकी खोज
___ कार्यमें अपने अनुभवी, शिक्षातत्त्वज्ञ अजैन बंधुहोनी चाहिये, और संस्थाको ऐसे पंचोंके हाथोंमें ओंकी सम्मति और सहायतासे वंचित रहना यह सौंपनेकी जरूरत है जो उन. अध्यापकोंके कौनसी अक्लमंदी है ! अतः इस प्रस्तावित औकार्योंका भले प्रकार निरीक्षण करने और उन्हें योमिक विद्यालयकी प्रबंधकारिणी सभामें ऐसे समय समय पर निर्दिष्ट तथा यथोचित ही व्यक्तियोंको नियत करना चाहिये जो समा--- सहायता देनके लिये तैय्यार हों । विना जकी स्थिति और सामायक बातोंके. जानकार ऐसा किये अब काम नहीं चलेगा । आवश्य- होनेके सिवाय उद्योगी और शिक्षातत्त्वज्ञ हो... कीय विषयोंका निर्धार कर उनपर विद्वानोंद्वारा चाहे वे जैन हों या अजैन। ग्रंथ लिखवानेसे ग्रंथोंका अभाव दूर हो सकता है।
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