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अङ्क १०-११]
हिन्दीके स्थानकवासी जैन लेखक ।
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बाड़ी लेय बनाय सुपारी तपस्या कीजै।
कहाँ बुध मेरी जु हों, ऑरभ परिग्रह लीन । प्रभू नामकी डार इलायची मुखमें दीजै ॥
गुरुमुषरौं नहिं लह्यो, आगम अरथ अहीन ॥ कहे मगन ऋषि राय पापकी काटो स्याई ।
जो कोई जिन वयनसों, अल्प भिन्नता + + । संक्यों पीक निकाल ज्ञान मुख लाली छाई॥
बहुश्रुति सोधौ करि मया, मोहि नहीं पषपात ॥ २-दलपतराय ।
सकल जिनेश्वर देवर, भक्ता तिनको दास । आप दिल्लीके रहनेवाले श्वेताम्बर स्थानक
दलपतराय सुसंघ तूं, करै सुनो अरदास ॥ वासी श्रावक थे। जौहरीका काम करते थे।
मैं पापी अति मूढ़मति, विकल विषैमें लीन । सुना जाता है कि आपने अपनी पढाईमें और तारो मोहूँ करि मया, बाँचौ ग्रंथ प्रवीन ॥ पण्डितोंके आदर-सत्कारमें तीन लाख रुपया खर्च ।। जहाँ लिष्यो आगम विरुध, देषो वहाँ निसंक। किया था। आप संस्कत, प्राकत. हिन्दी. गज- कहु अज्ञान मुझ मूढ़ा, तात हों निकलंक ॥ . राती, उर्दू फारसी इत्यादि भाषाओंके ज्ञाता थे। संवत अट्ठारैसें, बारा अधिके जान। आपने इनमें से पहली तीन भाषाओं में रचना की वैसाष शूद दसमको, ग्रंथ समापत ठान ॥ है । आपकी हिन्दी रचना गुजरातीमिश्रित है। इसी नामका एक ग्रंथ आपने संस्कृतमें और वह गद्य और पद्य दोनोंमें है और काव्यकी एक प्राकृतमें लिखा है, परन्तु वे चित्रबद्ध नहीं दृष्टिसे बहुत साधारण है । आपके बनाये हुए हैं। दोनों ग्रंथ पद्यमें हैं । आपने प्राकृतमें एक तीन हिन्दी ग्रंथोंका हमको पता है, इनमेंसे 'शकुनावली' नामक ग्रंथ भी लिखा है। पहले दो हमने स्वयं देखे हैं। आपके बनाये हुए २-सम्यक्त्वषट्पंचासिका । यह एक. कदाचित् और भी ग्रंथ होंगे।
बहुत छोटा ग्रंथ है । विषय नामसे ही स्पष्ट है। १-नवतत्त्वप्रकरण । यह ग्रंथ गद्य-पद्यमय इसकी भी मुझे एक बहुत अशुद्ध प्रति देखनेको है। बड़े महत्त्वका है । श्वेताम्बरोंके बत्तीस मिली । नमूना देखिएसूत्रोंका सार इसमें बड़ी खूबीके साथ भरा है।
उपशम जेह कषाय नों, तेदनो सम अवधान। यह ग्रंथ गागरमें सागर भरनेकी उक्तिको चरि- मुक्ति पंथनी चाहना, संबेग...प्रधान ॥ . तार्थ करता है । समस्त ग्रंथों खानापूरी की हुई।
हुई होय उदास विषय विर्षे, जाना जो निर्वेद । है और अनेक चित्र दिये हैं, जो दर्शनीय हैं परदष देषी दुष दया, ये है चौथौ भेद ॥ और लेखकके पाण्डित्य और बुद्धि-विकाशका
३-द्रव्य-गुण-पर्याय । यह ग्रंथ अलवर परिचय देते हैं । इस ग्रंथम इबारत बहुत कम में भज्जलाल साधकेभाण्डारमें मौजद है। हमारे है। इसके लिखने में गोमद्रसार और लीलावती
वती देखनेमें नहीं आया । इत्यादि ग्रंथोंसे भी सहायता ली गई है। इसकी
__आपके लिखे हुए फारसीके कुछ शेर भी रचना संवत् १८१२ में हुई थी। इसकी जो . प्रति हमने देखी है वह बहुत अशुद्ध लिखी हुई।
. एक सज्जनने देखे हैं। थी। प्रशस्ति देखिए--.
३-मुनि तिलोकरिख । कीरत कूँ नाहीं किया, कर विचार उपगार । आप श्वेताम्बर स्थानकवासी संप्रदायके साधु अपने समरणको कियो, नवतत संग्रह सार॥ थे। आपकी भाषा गुजराती और प्राकृत मिश्रित १शंका।
१ दया। २ विनय।
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