________________ ____“जे लोयं वियाणेइ से अप्पं वियाणेइ, जे अप्पं वियाणेड़ से लोयं वियाणे।।" अर्थात् जो लोक को जानता है वह आत्मा को जानता है और जो आत्मा को जानता है वह लोक को भी जानता है। लोक पुरुषाकृति में है, अतः लोकबोध का अर्थ आत्मबोध ही है। अर्थात् जो लोक है, वही पुरुष है, जो पुरुष है, वही लोक है। इसी को अंग्रेजी में किसी विचारक ने कहा है The whole universe is present with us. अर्थात् समस्त लोक मनुष्य के भीतर है। पुरुष स्वयं में मिनी लोक है। प्रस्तुत जैन गणितानुयोग ग्रन्थ प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम “जैन गणितानुयोग" है। हमारे पूर्वाचार्यों ने सम्पूर्ण आगम-साहित्य को विषय की समानता के आधार पर चार भागों में विभाजित किया है (1) चरणानुयोग-साधु व श्रावक की आचार-शैली। (2) धर्मकथानुयोग-दृष्टान्त, कथाएँ। (3) द्रव्यानुयोग-जीव-अजीव द्रव्य, नवतत्त्व आदि। (4) गणितानुयोग-गणित के सूत्र, लोक स्वरूप आदि। प्रस्तुत ग्रंथ गणितानुयोग से सम्बन्धित है। इसमें लोक का तीन भागों में वर्गीकरण करके ऊर्ध्व, मध्य और अधोलोक का वर्णन किया गया है। लोक की संरचना एवं संख्या, जम्बूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप-समुद्र, मेरू पर्वत आदि पर्वतों, गंगा-सिंधु आदि महानदियों, चक्रवर्ती की षट्खण्ड विजय यात्रा का क्रम, इसके अतिरिक्त समय से लेकर संख्यात, असंख्यात अनन्त कालमान का स्वरूप व भेद, पल्योपम सागरोपम, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी, पुद्गल परावर्तन आदि काल का यथोक्त विवेचन तथा क्षेत्रमान में प्रदेश से प्रारम्भ कर सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगत् श्रेणी, जगत्प्रतर आदि लोक के विविध मापदण्डों का भी विवेचन है। अंत में वर्तमान विज्ञान के अनुसार विश्व का संदर्शन कराया गया है। पूर्वोक्त वर्णन गणितानुयोग विषय के अन्तर्गत आता है। गणितानुयोग का समग्र स्पर्श करने वाला होने के कारण ग्रंथ का नाम “जैन गणितानुयोग" ही सार्थक प्रतीत हुआ। दिगम्बर परम्परा में यह अनुयोग करणानुयोग के नाम से प्रचलित है। करणानुयोग में लोक वर्णन के अलावा जीवों के अनेक प्रकार के भाव, गुणस्थान, मार्गणा, जीव के भेद और कर्मों का विस्तृत वर्णन भी सम्मिलित है। श्वेताम्बर परम्परा में उक्त विषयों का समावेश द्रव्यानुयोग के अन्तर्गत किया गया है। ग्रंथ की आधार सामग्री प्रमुखतया पूज्य युवाचार्य मधुकर मुनि जी महाराज एवं भावयोगिनी महासती लीलमबाई द्वारा सम्पादित आगम साहित्य स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, जीवाजीवाभिगम, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, अनुयोगद्वार आदि से संकलित की गई है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर ग्रंथ तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार, सिद्धान्तसारदीपक तथा श्वेताम्बर ग्रंथ-लघुसंग्रहणी, लोकप्रकाश, बृहत्क्षेत्रसमासटीका एवं जैनतत्त्वप्रकाश, जिणधम्मो, जैनदृष्टिए मध्यलोक जैन भूगोल विशेषांक आदि ग्रंथों का भी विषय की साम्यता स्पष्टता व सरलता हेतु उपयोग किया है। यत्र-तत्र आगम या ग्रंथों में प्राप्त प्राचीन