Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - जिनगुणहीरपुष्पमाला चोरासी लक्ष भटक्यो, जीव मोक्ष से यह अटक्यो। शिव मार्ग चा रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥२॥ संसार सिन्धु अपारा, नही है मिला किनारा । गोता ही खा रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥३॥ सादरी का जैन मंडल, शुभ भाव भाते मंजुल । अरदास कर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥४॥ देवचन्द्र मूरि अर्जी, करिये हजूर मर्जी । अति कष्ट पा रहा हूं, चाहे तारो या न तारा ॥से०॥५॥ फरियाद सुनलो मेरी, कर्मों ने आके घेरा ॥ देर ॥ माता पिता व नारी, स्वार्थ के है वसिला। आखिर तो काम मेरे, आवेगा नाम तेरा ॥फरियाद॥१॥ यह माया जाल बिछाके, फंदे के बीच डाला। बचाये कौन आके, हमको भरोसा तेरा ॥फरियाद॥२॥ गुन्हा हुए जो मुजसे, माफी तुंही करेगा। दिलवादो मेक्षि हमको, होगा अहसान तेरा॥फ०॥३॥ चुमु कदम मै तेरे, श्री जिन देव स्वामी । हिराचंद आकर, सरना लिया है तेरा ॥ फरियाद॥४॥ For Private and Personal Use Only

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