Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनगुणहीरपुष्पमाला श्री जैन गजलौंकी चमकती अंगूठी. ( १ ) [ गजल. ] देखो नजरसे प्यारे इतना अंधेर क्या है । करलो प्रभुकी पूजा अब हेर फेर क्या है || ढेर || जिसने निघासें देखा, नहि खोट है रतिभर । हीरो मे हाथ डाला कंचनका ढेर क्या है ॥ १ ॥ हे चंद रोज मेला अखिर मे होगा जाना | तुम पूजा क्यो न करते प्रभुसे बैर क्या है ॥ २ ॥ करलो भलाई जगमे आती है काम वोही । सच्चा है नाम उसका अब लहर मेर क्या है ॥ ३ ॥ मिथ्यात्वरुपी मठ है इसका सुधार कीजे । हिराचंद झूट जगकी देखे तुं सेर क्या है ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) [ सवैया ] कलम कान में क्या कहती है जसे उखाडके सुखाय डाले मांही; मेरे प्राण वोट डाले घरी जुओ केम कानमे; For Private and Personal Use Only ३९

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