Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
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४२
जिनगुणहीरपुष्पमाला
( ६ )
[ मेरे मौला बुला लो मदिने मुजे ] दाता महेर नजर करी तारो मने. दास तारा छे अनंता, शुं थवानुं एथी, सागर भरेलुं तोयथी, नालाथी कइ फुगतु नथी । प्रभुजी हाथ पकड ले जावो मुने ॥ १ ॥ दास तारो छु प्रभु, तम दासनो पण दास हुँ; छोडाव आ संसारथी, प्रभु भार हवे हुं ना सहुं । व्हाला आप सरिखो बनावो मुने ॥ २ ॥ दास हीराचंदनी अरजी प्रभु उद्धारजो; आश सम्यग रत्ननी कृपा करीने आपजो ।
दादा भवजल पार उतारो मने. || दा० ३ ॥
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( ७ )
[ गजल धुन कव्वाली. ]
अगर दुनियामें हो हुसियार उगाना ना मुनासिव है । टेर । प्रभु का नाम है सच्चा न पलभर उसको भूले तुम, भजन विन जिन्दगी व्यर्था गमाना ना मुनासिब है || १ ||
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