Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० जिनगुणहीरपुष्पमाला. मेरी गांठ काटे, मोही चाकुसे तरास डारे। - अन्तरमे चीर डारे धरे नही ध्यानमें ।। श्याही माही बोरि बोरि परे मुख कारो मेरो । करो मै उजारो तोही ज्ञान के जहानमें । परे है पराये हाथ तज्यो न परोपकार । चाहे घिस जाउं यो कलम कहे कानहे. ॥१॥ . (३) [ राग गजल.-ताल धमाल. ] शरन जिनवरकी जाने में, जगत छुटे तो छुटन दे। दान दुखियो को देने से, द्रव्य खूटे तो खूटन दे ॥ टेर ।। कठिन माया के फांसी मे; बन्धा है सर्व संसारा। भले जो मोहकी रस्सी, अगर टूटे तो टूटन दे । श०।१। करो सेवा साधुओकी, सुनो प्रभु नामकी चरचा । विषय की आस दुनयासे, अगर भागे तो भागन दे शिकार हमेशां जाय कर बैठो, जहां सतसंग होता है । सुनो नित ज्ञान की चरचा, जगत रूठे तो रूठन दे ।श०।३ काज अरू लाज तज करके, शरण वीतराग की लिजे। हिराचंद जगत तुझसे, अगर लाजे तो लाजन दे । श०।४ For Private and Personal Use Only

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