Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ जिनगुणहीरपुष्पमाला आप हा जग्तके दाता, अरज मैने गुजारी है; रतनको दास जाणीने, शरण आयो तुमारी है. बिना०४ ( ३२ ) | खुने जीगर को पीते हय, बस गम्मे तेरे यार- प चाल । महावीर ! तमारी मनहर मुरति देखी मन हरखाय. आं० ॥ प्रभु त्रिशला माताना जाया, सिद्धारथ नृप कुल आया । -इंद्राणी मली हुलराया, तोरी कंचनवरणी काय । महा० १ जल कलश भरी न्हवरावुं, पूजन करी अति हरखाउं; भव भवना दुःख गमावु, मुज जन्म कृतारथ थाय । महा०२ वली सुन्दर पुष्प मगावु, तेनी गुंथी माल बनावुं । लइ प्रभु कंठे पहेरा, तारा सुर नर सेवे पाय । महा० ३ भक्ति भरी भावना भावु, गुण गानथी पावन थाउं । निशदिन तुम ध्यान धराउं, जेथी दुर्लभ समकित थाय. महा० ( ३३ ). बोल बोल आदीश्वर दादा, कांई थांरी मरजी रे म्हांसु मुहं बोल चाल चाल आंदीश्वर भेटा, सिद्धगिरी चालो रे के कर्म खपावो रे For Private and Personal Use Only टेर.

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