Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला पिचकारी जल भरी, विमल कमल करी; अबीर गुलाल बीच कैसी, झीनी छानी रे. ॥ २ ॥ पशुअन दया करी, भये पूर्ण व्रत धारी; आगे ही मिलुंगी तुमसे, सुनो केवल ज्ञानी रे. ॥ ३॥ अधम उधारी मारी, त्रिभुवन उपकारी; कपूर प्रभु के चरने जैसे दूध पानी है. ॥ ४ ॥ ( ३६ ) [ तर्ज- मोहन मुसकाने ] १ कठिन लगनसी पीर एरि एरि मेरो साहब जाने || ढेर || मैं जंगल की हरिणी हो सजनी सदगुरु मार्यो तीर. लाग्यो तो जब शुधि नही मनसी, अब दुःख देत शरीर. २ आनंदघन चहे तुम्हरे मिलनसो, बैग मिलो महावीर. ३ ( ३७ ) [मेरे अंखियोमे रामरल ] निरंजन यार मोहे कैसे मिलेंगे. । टेर । दूर देखु में दरिया डुंगर, उंची बादर नीचे जमीतले रे । निरंजन० १ For Private and Personal Use Only २९

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