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जिनगुणहीरपुष्पमाला पिचकारी जल भरी, विमल कमल करी; अबीर गुलाल बीच कैसी, झीनी छानी रे. ॥ २ ॥ पशुअन दया करी, भये पूर्ण व्रत धारी;
आगे ही मिलुंगी तुमसे, सुनो केवल ज्ञानी रे. ॥ ३॥ अधम उधारी मारी, त्रिभुवन उपकारी; कपूर प्रभु के चरने जैसे दूध पानी है. ॥ ४ ॥
( ३६ ) [ तर्ज- मोहन मुसकाने ]
१
कठिन लगनसी पीर एरि एरि मेरो साहब जाने || ढेर || मैं जंगल की हरिणी हो सजनी सदगुरु मार्यो तीर. लाग्यो तो जब शुधि नही मनसी, अब दुःख देत शरीर. २ आनंदघन चहे तुम्हरे मिलनसो, बैग मिलो महावीर.
३
( ३७ )
[मेरे अंखियोमे रामरल ]
निरंजन यार मोहे कैसे मिलेंगे. । टेर । दूर देखु में दरिया डुंगर,
उंची बादर नीचे जमीतले रे । निरंजन० १
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