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जिनगुणहीरपुष्पमाला
(४१) (चाल-आसक ता हो चुका हूं) शरणा तो ले चुका हूं, चाहे तारो या न तारो । टेर । जीवनसे अब मै हारा, तब तुपो हे पुकारा। अरजी तो दे चुका हूं, चाहे तारो या न तारो. ॥ सब इन्द्रियों सतावे, मन मैलको बढावे । भवजलमे ये डुवा हुं, चाहे तारो या न तारो.॥ क्या हाल कहु मै सारा, जो दिलमे है हमारा । वल्लभ तो हो चुका हूं, चाहे तारो या न तारो.॥
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[ कसुबी रंग छाया ] सुसंगी सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये । सफल हुए मेरे नैन. । नैनों सुसंगी० । टेर। एक तो मे दर्शन में दर्शन मे दर्शनको प्यासो,
दर्श विना नहीं चैन.। नयनो०१ एक तो मे पापी मे पापी मे पापी हुँ पाणी।
तारण वाले भगवान. । नयनो० २
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