Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला (४१) (चाल-आसक ता हो चुका हूं) शरणा तो ले चुका हूं, चाहे तारो या न तारो । टेर । जीवनसे अब मै हारा, तब तुपो हे पुकारा। अरजी तो दे चुका हूं, चाहे तारो या न तारो. ॥ सब इन्द्रियों सतावे, मन मैलको बढावे । भवजलमे ये डुवा हुं, चाहे तारो या न तारो.॥ क्या हाल कहु मै सारा, जो दिलमे है हमारा । वल्लभ तो हो चुका हूं, चाहे तारो या न तारो.॥ १ २ ३ [४२] [ कसुबी रंग छाया ] सुसंगी सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये । सफल हुए मेरे नैन. । नैनों सुसंगी० । टेर। एक तो मे दर्शन में दर्शन मे दर्शनको प्यासो, दर्श विना नहीं चैन.। नयनो०१ एक तो मे पापी मे पापी मे पापी हुँ पाणी। तारण वाले भगवान. । नयनो० २ For Private and Personal Use Only

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