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जिनगुणहीरपुष्पमाला दासको विहार तार वीर नाथ तु ।
रंग भंग मोहको विरंग जार तु। जि० २ निरख तात रैन रैन नाथ साथ तु ।
तेरे ही दर्श परसको आनन्द मानु हुं ।जि०३ सुर नूर रंगको अनंगकार तु ।
आतम आनन्द रंग राज आज हु। जि० ४
[दिवाना तेरे दर्शका ए यार मे मिहु] निर्रजन निराकार अरज सुनीये जरा। तु सबका रहीमकार है, लाचार मै भी हु ॥१॥ रखता हु सरोकार जो तु ही से मै सदा। दातार तु ही है तेरा नादार मै भी हु ॥२॥ कोफी बडे मनसे जहान मे भरा। अव्वल हकीम तु तेरा बीमार मै भी हु ॥ ३ ॥ सुनके सखुन कपुरका पदमामे लौ लगा। तु ही सीरे सरदार ताबेदार मै भी हु । ४ ।
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