Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला धरतीमे गड़े तो न पिछार्नु रे, ___अग्नि सहुं तो मेरी काया जले रे । निरंजन० २ आनंदघन कहे जस सुन बातों, वो ही मिले तो मेरो फेरो टले रे । निरंजन०३ (३८) कानुडा तारी कामण करनारी-प राग शांतिजिन तुमरे दरिशन सुखकारी, देखन आवे नरनारी. मीठी वली मोहक मन वश करनारी, वाणी लागे म्हनेव्हाली समकित आंगी बनी मुख जोतों जावे दुःख भारी.। दे०१ आंखडली अविकारी दिखे सुन्दर जाउं बलिहारी। हीरानो हीरानो हरदम सीस मुकुट भारी.। देखन० २ जगपति जिनवर छो सुखरन्दन आपो भक्ति सारी । उगारी उगारी भव जल सुरजने तारी। देखन० ३ (३९) [ तर्ज-अंग्रेजी बाजे ] जिनंद चंद देखके आनन्द भयो हुँ । टेक । तुही कलंक पंकको निपंककार तुं । बंध कर्म धंधको विडार डार तुं । जि० १ For Private and Personal Use Only

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