Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला युवा हुइ तिरीया, मर गये बालम; रांड कर दीनी दुःख उठाने को ।। २ ।। रो रो कर वो रूदन मचावे; सुन आवे दया सब जमाने को ॥ ३ ॥ मरियो पापी मा बाप म्हारा; म्हने बेची थी थैली भराने को || ४ || मरियो पंडित व्याह सुझइयो; फेरे बुढढे से आया फिराने को ।। ५ ।। मेरा तरसना दुष्टो ने कीना लोभ; छाया था धन के कमाने को ॥ ६ ॥ रो रो कर मै आंख्या गमाउं जाउं; किसको में हाय सुनाने को ॥ ७ ॥ जिन पंचो का भरोसा गिनेथी; वोह तो शामिल थे लडडू उडाने को ॥ ८ ॥ कैसी ए ओंधी जोडी मिलावे: लोगो के हंस ने हंसाने को ।। ९ ।। वीसकी पुत्री सात के बालम, व्याहो क्या दुध पिलाने को ॥ १० ॥ For Private and Personal Use Only

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