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जिनगुणहीरपुष्पमाला चैत्र वदी आठम दिन जायो, मारूदेवी माता रे । नाभी के तुम नंद कहावो, जग सुख दाता रे के
सिद्धगिरी चालो रे ॥१॥ संजम लेई प्रभु कर्म खपाया, राग द्वेश नहीं कीनो रे । प्रथम तीर्थकर केवल पामी, दरीसन दीनो रे के
__ सिद्धगिरी चालो रे ॥२॥ सोरठ सम तीरथ नही जगमें, श्री सिद्धांते भाख्यो रे; नाम एकवीस महा गुणवंता, दीलमे राखो रे के
सिद्धगिरी चालो रे ॥३॥ बालक युवा वृध्ध नर नारी, सबही चढतां हांफे रे; हिंगलाज देवीरी घाटी. देखत कांपे रे के
सिद्धगिरी चालो रे ॥४॥ आदीश्वर दरिशन दो अव तो, आयो शरण तुमारे रे; भव सागरथी पार उतारो, जाउं बलिहारी रे के
सिध्धगिरी चालो रे ॥५॥ श्री शुभ चिंतक जैन सभासद, दास मंडली गावे रे; निनाणु जात्रा करवानी भावना भावे रे के
सिध्धगिरी चालो रे ॥६॥
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