Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला चैत्र वदी आठम दिन जायो, मारूदेवी माता रे । नाभी के तुम नंद कहावो, जग सुख दाता रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥१॥ संजम लेई प्रभु कर्म खपाया, राग द्वेश नहीं कीनो रे । प्रथम तीर्थकर केवल पामी, दरीसन दीनो रे के __ सिद्धगिरी चालो रे ॥२॥ सोरठ सम तीरथ नही जगमें, श्री सिद्धांते भाख्यो रे; नाम एकवीस महा गुणवंता, दीलमे राखो रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥३॥ बालक युवा वृध्ध नर नारी, सबही चढतां हांफे रे; हिंगलाज देवीरी घाटी. देखत कांपे रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥४॥ आदीश्वर दरिशन दो अव तो, आयो शरण तुमारे रे; भव सागरथी पार उतारो, जाउं बलिहारी रे के सिध्धगिरी चालो रे ॥५॥ श्री शुभ चिंतक जैन सभासद, दास मंडली गावे रे; निनाणु जात्रा करवानी भावना भावे रे के सिध्धगिरी चालो रे ॥६॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49