Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनगुणहीरपुष्पमाला लघुता मता करे नाथ, प्रभुता प्रभु नावे हाथ; कीनेr मै लघुता साथ, नाथ भवपार तराने वाले. प्रभु वीतराग गुणवान, खरे भक्तोंके भगवान, करे सेवा पाये निरवान, निज आतम रूप धराने वाले, ३ दीने द्वारक जिनदेव, सुर नर नारी करे सेव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१ ) ॥ कव्वाली ॥ करे समरण भवि नित्यमेव, परम पद मुक्ति पाने वाले. ४ आतम लक्ष्मी प्रभु नाथ, करो नाथ अनाथ सनाथ; धरी हर्ष जोडी दाय हाथ, प्रभु वल्लभ गुण गाने वाले. ५ चौराशी लाखमे भटक्या, बहुतसी देह धारी है । वेरा मुज कर्म आठाने, गले जंजीर डारी है. दुनियामे देव सब देखे, सभीको लोभ भारी है, केइ क्रोधी के मानी, किसीके संग नारी है. मुसीबत जो पडी मुजपे, उसीको खुद निहारी है; शिशुके आसरो तेरो, यही विनती हमारी है. . For Private and Personal Use Only विना प्रभु पार्श्वके देखे, मेरे दिस बेकरारी हे | आंकणी. • २५ १ २ २ ३.

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