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जिनगुणहीरपुष्पमाला
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(कन्वाली.) नाम प्रभु पाच जिनवरका, मेरे दिलमे समाया है, हुआ हे शांत चित्त जिसने, के आकर दर्श पाया है.। अं० साखी-वामा माता जनमिया, पार्श्वनाथ जिनचंद
अश्वसेन कुलमें प्रभु, दिन दिन वृद्धि करंद. मिलि सुरलोकसे अमरा, सबी पूजनको आया है ।। ना० १
तीस वरस ग्रहवासमें, वसिया श्रीजिनराज
वरसीदान दिया घना, संयम अवसर पाय. लइ दिक्षा कठिन तपसे, कर्म धाति खपाया है ॥ नाम० २
चौरासी दिन बादमे, पाया केवलज्ञान;
इन्द्रादिक ओच्छव करे, समोसरण मैदान, दह उपदेश हितकारी, चतुर्विध संघ बनाया है। नाम० ३
दश गणधर प्रभु थापिया, साधु सोल हजार;
तीन सहस प्रभुके हुए, चउदा पूर्व धार. ज्ञान श्रुत रूपसागरसे, केवली सम कहाया है ॥ नाम० ४
दो शत एक हजार है, वादी का परिवार;
मज्ञा मानो सही, सुर गुरु सम अवतार. बाद कर जैन का झंडा, जगत भर में फिरांया है नाम० ५
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