Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला _____ (कन्वाली.) नाम प्रभु पाच जिनवरका, मेरे दिलमे समाया है, हुआ हे शांत चित्त जिसने, के आकर दर्श पाया है.। अं० साखी-वामा माता जनमिया, पार्श्वनाथ जिनचंद अश्वसेन कुलमें प्रभु, दिन दिन वृद्धि करंद. मिलि सुरलोकसे अमरा, सबी पूजनको आया है ।। ना० १ तीस वरस ग्रहवासमें, वसिया श्रीजिनराज वरसीदान दिया घना, संयम अवसर पाय. लइ दिक्षा कठिन तपसे, कर्म धाति खपाया है ॥ नाम० २ चौरासी दिन बादमे, पाया केवलज्ञान; इन्द्रादिक ओच्छव करे, समोसरण मैदान, दह उपदेश हितकारी, चतुर्विध संघ बनाया है। नाम० ३ दश गणधर प्रभु थापिया, साधु सोल हजार; तीन सहस प्रभुके हुए, चउदा पूर्व धार. ज्ञान श्रुत रूपसागरसे, केवली सम कहाया है ॥ नाम० ४ दो शत एक हजार है, वादी का परिवार; मज्ञा मानो सही, सुर गुरु सम अवतार. बाद कर जैन का झंडा, जगत भर में फिरांया है नाम० ५ For Private and Personal Use Only

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