Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला प्रभु एक अनेकी जगमे, तुज भक्ति मुज रग रगमे । नही माणेक हो नग नगमेरे, तिम दुर्लभ जिनराय. २ प्रभु निगोदमे नही मिलिया, त्यां काल अनंतो रूलिया; थावर द्वितिचउ भूलियारे, विन दर्शन दुःख पाय. ३ अब पुण्य उदय मै पायो, सन्नी पंचेंद्रीमे आयो; तब दर्शन नाथ दिखायारे, लेउं आणा शिर चढाय. ४ प्रभु स्थिरबोधी हुं मागु, निज आत्मभावमा जागुंः मेरी तेरीसे भागुरे, ए आपो महाराय. मुन तत्वत्रयी प्रभु आपो, तुम हस्त शिर पर स्थापो; भव भ्रमणा मारी कापोरे, पामरमें दिल लगाय. ६ खुब गाम बुहारी साहे, तुम ध्यान मुज मन मोहे; प्रभु जोइ मोह अति खोहेरे, अब हटसे मोहराय. ७ मुज आत्म कमल विकसावा, लब्धि लक्ष्मी निवसावा; हुँ राखं तुमथी दावारे, तुम चरणे चित ठाय. ८ . (२३) ( कव्वाली.) नाभिराजा के कुल मंडन, आदीश्वर हो तो ऐसे हो. टेर For Private and Personal Use Only

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