Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला निहासे अब तो जागो व्यसनांको शीघ्र त्यागो; लो लक्षमे उसीको, है साध्य जो तुम्हारा.। जागो० ५ ए वीर पुत्र प्यारे, बन करके वीर सारे; हिल मिलके अब करो तुम, निज कौमका सुधारा. जा०६ उपकारमय हृदय हो, परदुःखमे सदय हो; जिनधर्मका उदय हो, ऐसा करो विचारा. जागो० ७ स्वधर्मी जो तुम्हारे, फिरते हे मारे मारे; लाओ दया उन्हो पर, तन धनसे दे सहारा. जागो० ८ सब भिन्नभाव छोडो, मन ऐक्यतामे जोडा; होवेगा विश्वभरमे, आदर तभी तुम्हारा. जागो० २ पुरुषार्थ कर दिखाओ, कर्तव्य कर बताओ ए जैन वीरपुत्रो, करता हुं मै इसारा. जागो० १० ॥राग महावीर तमारी मोहन मुर्ति देवी-ए राग ॥ वासुपूज्य जिनेश्वर जाई मारुं दिलडं हरखाय. । अंचली। प्रभु सर्व देव गरिठा, मै जगमां न और दीठा; लागे मुज मन अति मीठारे मन तृप्ति नव थाय. १ For Private and Personal Use Only

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