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जिनगुणहीरपुष्पमाला ( १९ ) ( तर्ज कव्वाली. )
तेरे दरबार मे हमने, अरज अपनी गुजारी है;
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सुनो या ना सुनो स्वामी, कि यह मरजी तुमारी है. टेक विना दर्शन किये तेरा, कठिन हे जीवना मेरा; विरहने आन कर घेरा नही दिलको करारी हे. चुरा कर दिल मेरा अब क्यों नही दर्शन दिखाते हो; तुम्हारे दर्शकी अब तो, मुझे ऊमेद भारी है. रमा हे नूर आंखोमे, तुम्हारी प्रेम दृष्टिका; न जाने मोहनी सुरत, ये कैसी जादुगारी है. मिले इस प्रेमका बदला, तो जीवन हो सफल मेरा; दयाकी भीख दे दरपें, खडा तेरे भिखारी है.
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( २० )
॥ गजल ॥
रोशन तो हो रहा है, दुनियामे नाम तेरा ॥ टेक ॥ सेवा मुझे तुमारी, प्रभु शान्ति लागे प्यारी; तुमसे ही काम मेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥ हे वीनती हमारी, जो हो मेहेर तुम्हारी; टारो अनादि फेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥
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