Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२ जिनगुणहीरपुष्पमाला ( १५ ) || चाल नाटक. ॥ ( बहार मेरे प्यारे गुलशन आई बहार . ) उतार मेरे प्रभुजी भवजलसे पार उतार उतार मेरे प्रभुजी. काल अनंता भयो भवमांही, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पायो है दुःख अपार अपार मेरे प्रभुजी ॥ १ ॥ करूणा जनक दशा है मेरी, तेरी है दृष्टि उदार उदार मेरे प्रभुजी ॥ २ ॥ जगबन दुःख दावानल दह के, सेवकको लिजो उगार उगार मेरे प्रभुजी ॥ ३ ॥ शीतल जिन शितल अघ करके, आतम वल्लभ उजार उजार मेरे प्रभुजी ॥ ४ ॥ इस निःसार जगत में तिलकको, आज्ञा तुमारी है सार है सार मेरे प्रभुजी ॥ ५ ॥ ( १६ ) ( कव्वाली ताल. ) विना दर्शन किये तेरा नही दिल को करारी है । चुरा कर ले गई मनको, प्रभु सुरत तुम्हारी है । वि० । For Private and Personal Use Only

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