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जिनगुणहीरपुष्पमाला ( १५ )
|| चाल नाटक. ॥
( बहार मेरे प्यारे गुलशन आई बहार . ) उतार मेरे प्रभुजी भवजलसे पार उतार उतार मेरे प्रभुजी. काल अनंता भयो भवमांही,
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पायो है दुःख अपार अपार मेरे प्रभुजी ॥ १ ॥ करूणा जनक दशा है मेरी,
तेरी है दृष्टि उदार उदार मेरे प्रभुजी ॥ २ ॥ जगबन दुःख दावानल दह के,
सेवकको लिजो उगार उगार मेरे प्रभुजी ॥ ३ ॥
शीतल जिन शितल अघ करके,
आतम वल्लभ उजार उजार मेरे प्रभुजी ॥ ४ ॥ इस निःसार जगत में तिलकको,
आज्ञा तुमारी है सार है सार मेरे प्रभुजी ॥ ५ ॥
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( कव्वाली ताल. ) विना दर्शन किये तेरा नही दिल को करारी है । चुरा कर ले गई मनको, प्रभु सुरत तुम्हारी है । वि० ।
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