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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला फिक्र को अब त्याग दे, दिल को लगाले ज्ञान में; आनन्द चित्त हो जायगा, ऐसा मजा है ध्यानमे. शिव रमणी से नेह लगातो सही॥ प्यारे० ४ ॥ हंसका कहना यही नित पाप से डरते रहो; फिरते रहो शुभ काममे उपकारभी करते रहो. ऐसी बातो को दिल में जमा तो सही ॥ प्यारे० ५ ॥ जाना तुम्हे जरूरी, गुमरा रहे क्यों मन में; है वासा चंदरोजा तेरा इस सदन में ॥ टेर ॥ चक्री व राजा राणा धूम्ते थे जहां निशाना; सब छोड माल जरको, वासा किया है वनमें ॥जाना०॥१ यादव पति था वंका, बजता था जिनका डंका; वहभी समा गये है, एक दिन कोशंबी वनमें जाना०॥२ कौणिक कहां है चेडा, किया मानने बरवेडा; लाखो ही शिर कटाये, पछिताये मनही मनमे ॥जाना॥३ रावण भी जोश खाता, फूला नहीं समाता; एक दिन तो वहभी प्यारे, सोता पडाथा रनमें जाना०४ कहता है हंस इनपर, जिनराजका भजन कर; सोता पडा है क्यों कर, सोचो जरा तो दिलमें ।जाना०५ For Private and Personal Use Only
SR No.020387
Book TitleJain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH P Porwal
PublisherJain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
Publication Year1928
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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