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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला १३ न कलपाओ दया लाओ, हमे निज पास बुलवाओ । सहा जाता नहीं अब तो, विरह का बोज भारी है । वि० ११ ज्ञानसे ध्यान से तेरा, न सानी रूप दुनियामें । फिदा हो प्रेम में तेरे, उमर सारी गुजारी हैं । वि० । २ दया पूरन कष्ट चूरन करो अब आश मम पूरन । मेहेर की एकही दृष्टी, हमे काफी तुम्हारी है । वि० । ३ विमल है नाम जिन तेरा, विमल कर नाथ मन मेरा । चरण मे आपके डेरा, तिलक भव भव स्वीकारी है । वि० |४ 1 ( १७ ) ( चाल - आसक तो हो चुका हूँ ) पैदा हुवे हे भगवन, दुःखसे छुडानेवाले; भुले हुवे जनोंको, रस्ता बतानेवाले ॥ टेर सिद्धार्थके दुलारे, त्रिशलाके नंद प्यारे; आंखों मेरे तारे, दिलको लुभानेवाले. । पैदा० १ जन्माभिषेक जिस दम, इन्द्रोसे हो रहा था; अंगुष्ट बलसे उस दम, मेरू चलाने वाले । पैदा० २ संसार मोह माया को ध्यान से हटाया, आनंद धाम पाया, करुणा समुद्र वाले. । · पैदा० ३ For Private and Personal Use Only
SR No.020387
Book TitleJain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH P Porwal
PublisherJain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
Publication Year1928
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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