Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala Author(s): H P Porwal Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला शक इंद्र दिलमे लाया, तब मेरू प्रभुने हिलाया, ताकत हे जिनकी अपार, जन्मसे मेरू चलानेवाले भजले ॥२॥ क्षत्रिय कुंड नगर मोझार, लिया जन्म प्रभुने धार, तारे हे लोक अपार मोक्ष पावामे पानेवाले । भजले ॥३॥ जो स्मर लेवे जिनराज, वो राखे उनकी लाज; सब पूरण कर देकाज, कर्म जडको एहटानेवाले भ० ॥४॥ जंबूपुर नगर विशाल, सेाहे जिनमंदिर नाल; मूलनायक हे प्रतिपाल, ज्ञानलब्धिके पानेवाले भजले० ५ कानुडा तारी कामण करनारी-प राग आदिजिन अदभुत नंदकरणारी, मूरति मनोहर हे तारी। आपे वली झटपट शिवपुर सुखकारी, मूरति मनोहर हे तारी. चरणोमे आयो तुम हरवा, मरण दुःख भारी; हुं चाहुं हुं चाहु शूरवीर थइने शिवनारी १ मूरति० काल अनंता खाइ पुण्ये, मनुज देह धारी हुं पाया हुं पायो समकित लइने सुख भारी २ मूरति आतम आनंदको लेवा, तुम चरण कमल धारी; अब मानुं अब मानुं मिल गइ लब्धि मुझे सारी ३ मूरति० For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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